पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/३२६

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श्रीमद्भगवद्गीता यथावद् वक्ष्यामि। ज्ञेयं यत्तत्प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वामृतमश्नुते अनादिमत्परं ब्रह्म न सत्तन्नासदुच्यते ॥ १२ ॥ ज्ञेयं ज्ञातव्यं यत् तत् प्रवक्ष्यामि प्रकर्षण : जो जाननेयोग्य है उसको भली प्रकार यथार्थ- रूपसे कहूँगा। किं फलं तद् इति प्ररोचनेन श्रोतुः अभि- वह केय कैसे फलबाला है ? यह बात, श्रोतामें रुचि मुखीकरणाय आह- उत्पन्न करके उसे सम्मुख करनेके लिये कहते हैं- यद् ज्ञेयं ज्ञात्वा अमृतम् अमृतत्वम् अश्नुते न जिस जाननेयोग्य ( परमात्माके स्वरूप) को जानकर ( मनुष्य ) अमृतको अर्थात् अमरभावको पुनः म्रियते इत्यर्थः। लाभ कर देता है, फिर नहीं मरता ।

अनादिमद् आदिः अस अस्ति इति आदि- वह ज्ञेय अनादिमत् है । जिसकी आदि हो बह

मद् न आदिमद् अनादिमत् । किं तत्, परं आदिमत् और जो आदिमत् न हो वह अनादिमत् कहलाता है। वह कौन है ? वही परम---निरतिशय निरतिशयं ब्रह्म ज्ञेयम् इति प्रकृतम् । ब्रह्म जो कि इस प्रकरणमें ज्ञेयरूपसे वर्णित है । अत्र केचिद् अनादि मत्परम् इति पदं यहाँ कई एक टीकाकार 'अनादि' 'मत्परम्' इस छिन्दन्ति बहुव्रीहिणा उक्त अर्थे मतुप | प्रकार पदच्छेद करते हैं । ( कारण यह बतलाते हैं कि ) बहुव्रीहि समासद्वारा बतलाये हुए अर्थमें 'मतुप्' आनर्थक्यम् अनिष्टं स्वाद् इति । प्रत्ययके प्रयोगकी निरर्थकता है, अतः वह अनिष्ट है । अर्थविशेष च दर्शयन्ति अहं वासुदेवाख्या वे (टीकाकार ऐसा पदच्छेद करके) अलग अर्थ भी दिखाते हैं कि 'मैं वासुदेव कृष्ण ही परा शक्तिः यस्य तद् मत्परम् इति । जिसकी परम शक्ति हूँ वह ज्ञेय मत्पर है ।' सत्यम् एवम् अपुनरुक्तं स्याद् अर्थः चेत् । ठोक है, यदि उपर्युक्त अर्थ सम्भव होता तो ऐसा संभवति न तु अर्थः संभवति, ब्रह्मणः सर्व- पदच्छेद करनेसे पुनरुक्तिके दोषका निवारण हो. विशेषप्रतिषेधेन एव विजिज्ञापयिक्तित्वाद् सकता था, परन्तु यह अर्थ ही सम्भव नहीं है, क्योंकि यहाँ ब्रह्मका स्वरूप 'न सत्तन्नासदुच्यते' आदि वचनों- न सत् तद् न असद् उच्यते इति । से सर्व विशेषणोंके प्रतिषेधद्वारा ही बतलाना इष्ट है । विशिष्टशक्तिमत्त्वप्रदर्शनं विशेषप्रतिषेधः च ज्ञेयको किसी विशेष शक्तिवाला बतलाना इति विप्रतिषिद्धम् । तस्माद् मतुपो बहुव्रीहिणा | और विशेषणोंका प्रतिषेध भी करते जाना यह समानार्थत्वे अपि प्रयोगः श्लोकपूरणार्थः । परस्परविरुद्ध है । सुतरां ( यही समझना चाहिये कि ) मतुप् प्रत्ययका और बहुव्रीहि समासका समान अर्थ होनेपर भी यहाँ श्लोकपूर्तिके लिये यह प्रयोग किया गया है।