पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/३२७

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शांकरभाष्य अध्याय १३ अमृतत्तफलं ज्ञेयं मया उच्यते इति 'जिसका फल अमृतत्व है ऐसा ज्ञेय मेरेद्वारा प्ररोचनेन अभिमुखीकृत्य आहे- कहा जाता है। इस कथनसे रुचि उत्पन्न कर ( अर्जुनको) सम्मुख करके कहते हैं- न सत् तद् ज्ञेयम् उच्यते इति न अपि असत् उस ज्ञेयको न लत् कहा जा सकता है और तद् उच्यते। न असत् ही कहा जा सकता है। ननु महत्ता परिकरबन्धेन कण्ठरवेग उद्देष्य पू०-कटिबद्ध होकर बड़े गम्भीर स्वरसे यह ज्ञेयं प्रवक्ष्यामि इति अननुरूपम् उक्तं न सत् बतलाऊँगा फिर यह कहना कि 'वह न सत् घोषणा करके कि 'मैं ज्ञेय वस्तुको भली प्रकार तद्न असद् उच्यते इति । कहा जा सकता है और न असत् ही उस घोषणाके अनुरूप नहीं है। न, अनुरूपम् एव उक्तम् । कथं सर्वासु हि उ०-यह नहीं, भगवान् का कहना तो प्रतिज्ञाके उपनिषत्सु ज्ञेयं ब्रह्म 'नेति नेति' (बृ०७० ४ । अनुरूप ही है, क्योंकि बाणीका विषय न होनेके कारण ४।२२ ) 'अस्थूलमनणु' (बृ००३।३।८) सब उपनिषदोंमें भी ज्ञेय ब्रह्म ऐसा नहीं, ऐसा नहीं' 'स्थूल नहीं, सूक्ष्म नहीं' इत्यादिविशेषप्रतिषेधेन एव निर्दिश्यते न इदं इस प्रकार विशेषणोंके प्रतिषेधद्वारा ही लक्ष्य कराया तद् इति वाचः अगोचरत्वात् । गया है, ऐसा नहीं कहा गया कि वह ज्ञेय अमुक है। ननु न तद् अस्ति गद् वस्तु अस्तिशब्देन यू०-जो वस्तु अस्ति' शब्दसे नहीं कही जा न उच्यते । अथ अस्तिशब्देन न उच्यते । सकती, वह है भी नहीं । यदि ज्ञेय अस्ति' शब्दसे न अस्ति तद् ज्ञेयम् । विप्रतिषिद्धं च ज्ञेयं तद् फिर यह कहना अति विरुद्ध है कि वह 'ज्ञेय' है नहीं कहा जा सकता तो वह भी वास्तवमें नहीं है। अस्तिशब्देन न उच्यते इति च । और 'अन्ति' शब्दसे नहीं कहा जा सकता। न तावद् न अस्ति नास्तिबुद्धयविषयत्वात् । उ०-वह (ब्रह्म) नहीं है, सो नहीं, क्योंकि वह 'नहीं है' इस ज्ञानका भी विषय नहीं है। ननु सर्वा बुद्धयः अस्तिनास्तिबुद्ध्यनुगता पू०-सभी ज्ञान अस्ति' या 'नास्ति' इन बुद्धियों- एव। तत्र एवं सति ज्ञेयम् अपि अस्तिबुद्धचनुगत- मेंसे ही किसी एकके अनुगत होते हैं । इसलिये ज्ञेय भी या तो 'अस्ति' ज्ञानसे अनुगत प्रतीतिका प्रत्ययविषयं वा साद् नास्तिबुद्धयनुगतप्रत्यय- विषय होगा या 'नास्ति' ज्ञानसे अनुगत प्रतीतिका विषयं वा स्यात् । विषय होगा। न, अतीन्द्रियत्वेन उभयबुद्धधनुगतप्रत्यया- उ०-यह बात नहीं है। क्योंकि वह ब्रह्म इन्द्रियोंसे अगोचर होने के कारण दोनों प्रकारके विषयत्वात् । ही ज्ञानोंसे अनुगत प्रतीतिका विषय नहीं है। यद् हि इन्द्रियगम्यं वस्तु घटादिकं इन्द्रियोंद्वारा जाननेमें आनेवाले जो कोई घट आदि पदार्थ होते हैं, वे ही या तो 'अस्ति इस ज्ञानसे तद् अस्तिबुद्धयनुगतप्रत्ययविषयं वा स्याद् अनुगत प्रतीतिके या 'नास्ति' इस ज्ञानसे अनुगत नास्तिबुद्धधनुगतप्रत्ययविषयं वा खात् । प्रतीतिके विषय होते हैं।