पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/३४४

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श्रीमद्भगवद्गीता स एक इषुः प्रवृत्तिनिमित्तानारब्धवेग तु वही वाण, जिसका प्रवृत्ति के लिये वेग आरम्भ नहीं हुआ है.---जो छोड़ा नहीं गया है, यदि अमुक्तो धनुपि प्रयुक्तः अपि उपसहियते तथा धनुपपर चढ़ा भी लिया गया हो तो भी उसको रोका जा सकता है, वैसे ही जिन कमौके अनारब्धफलानि कर्माणि खाश्रयस्थानि एव फलका आरम्भ नहीं हुआ है, वे अपने आश्रयमें स्थित हुए ही ज्ञानद्वारा निर्बीज किये जा ज्ञानेन निर्बीजीक्रियन्ते । सकते हैं। इति पतिते असिन् विद्वच्छरीरे 'नस अतः इस विद्वत्-शरीरके गिरने के पीछे यह भूयोऽभिजायते' इति युक्तम् एव उक्तम् इति फिर उत्पन्न नहीं होता' यह कहना उचित ही है, सिद्धम् ॥२३॥ यह बात सिद्ध हुई ॥२३॥ . अत्र आत्मदर्शने उयायविकल्पा इमे यहाँ आत्मदर्शनके विषयमें ये ध्यान आदि ध्यानादय उच्यन्ते-- भिन्न-भिन्न साधन विकल्पसे कहे जाते हैं--- ध्यानेनात्मनि पश्यन्ति केचिदात्मानमात्मना । अन्ये सांख्येन योगेन कर्मयोगेन चापरे ॥ २४ ॥ ध्यानेन ध्यानं नाम शब्दादिभ्यो विषयेभ्यः शब्दादि विषयोंसे श्रोत्रादि इन्द्रियोंको हटाकर श्रोत्रादीनि करणानि मनसि उपसंहृत्य मनः उनका मनमें निरोध करके और मनको अन्तरात्मा- | में (निरोध करके ) जो एकाग्र-भावसे चिन्तन च प्रत्यक चेतयितरि एकाग्रतया यत् चिन्तनं करते रहना है, उसका नाम ध्यान है । तथा तद् ध्यानम् । तथा 'ध्यायतीव बको 'ध्यायतीव | 'बगुला ध्यान-सा करता है' 'पृथ्वी ध्यान-सा पृथिवी ध्यायन्तीव पर्वता' (छा ० उ०७।६।१) करती है, पर्वत ध्यान-सा करते हैं इत्यादि उपमा दी जानके कारण तैलधाराकी भाँति निरन्तर इति उपमोपादानात् तैलधारावत् संततः अवि- अविच्छिन्न-भावसे चिन्तन करनेका नाम ध्यान है, च्छिन्नप्रत्ययो ध्यानं तेन ध्यानेन आत्मनि बुद्धौ उस ध्यानद्वारा कितने ही योगी लोग आत्मामें-बुद्धि- पश्यन्ति आत्मानं प्रत्यक्चेतनम् आत्मना ध्यान- में, आत्माको यानी प्रत्यक्चेतनको आत्मासे-ध्याना- संस्कृतेन अन्तःकरणेन केचिद् योगिनः। भ्यासद्वारा शुद्ध हुए अन्तःकरणसे---देखते हैं । अन्ये सांख्येन योगेन सांख्यं नाम-इमे अन्य कई योगीजन सांख्ययोगके द्वारा ( देखते सत्त्वरजस्तमांसि गुणा मया दृश्या अहं तेभ्यः हैं )- 'सत्त्व, रज और तम ये तीनों गुण मुझसे देखें जानेवाले हैं और मैं उनसे भिन्न उनके व्यापारका अन्यः तद्व्यापारसाक्षिभूतो नित्यो गुण- साक्षी, उन गुणोंसे विलक्षण और नित्य (चेतन) विलक्षण आत्मा इति चिन्तनम् एष सांख्यो आत्मा हूँ' इस प्रकारके चिन्तनका नाम सांख्य है, योगः तेन पश्यन्ति आत्मानम् आत्मना यही योग है, ऐसे सांख्ययोगके द्वारा-'आत्मामें इति वर्तते । आत्माको देखते हैं।