पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/३५०

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श्रीमद्भगवद्गीता 1 सर्वभूतस्थम् ईशं समं पश्यन् न हिनस्ति यह जो कहा कि, ईश्वरको सब भूतोंमें सम- भावसे स्थित देवता हुआ पुरुष, आत्माद्वारा आत्मा- आत्मना आत्मानम् इति उक्तं तद् अनुपपन्नं का नाश नहीं करता, सो ठीक नहीं क्योंकि अपने जीवोंमें खगुणकर्मवैलक्षण्यभेदभिन्नेषु आत्मसु इति गुण और कोंकी बिलक्षणतासे विभिन्न इस प्रकार देखना नहीं बन सकता, ऐसी शंका एतद् आशङ्कय आह---- करके कहते हैं- प्रकृत्यैव च कर्माणि क्रियमाणानि सर्वशः । यः पश्यति तथात्मानमकर्तारं स पश्यति ॥ २६ ॥ प्रकृत्या प्रकृतिः भगवतो माया त्रिगुणात्मिका, । 'मायाको प्रकृति समझना चाहिये' इत्यादि 'मायां तु प्रकृतिं विद्यात्' (थे० उ०४।१०) मन्त्रों के अनुसार भगवान्की त्रिगुणात्मिका मायाका इति मन्त्रवर्णात् तया प्रकृत्या एव च न अन्येन नाम प्रकृति है, जो कि महत्तत्त्व आदि कार्य-करणके आकारमें परिणत है; उस प्रकृतिद्वारा ही, मन, महदादिकार्यकरणाकारपरिणतया कर्माणि वाणी और शरीरसे होनेवाले सारे कर्म, सब प्रकारसे वामनाकायारभ्याणि क्रियमाणानि निर्वयं- सम्पादन किये जाते हैं; अन्य किसी से नहीं, इस मानानि सर्वशःसर्वप्रकारैः यः पश्यति उपलभते । प्रकार जो देखता है । तथा आत्मानं क्षेत्रज्ञम् अकर्तारं सर्वोपाधि- तथा आत्माको क्षेत्रज्ञको जो समस्त उपाधियोंसे विवर्जितं पश्यति स परमार्थदर्शी इति अभिप्रायः रहित अकर्ता देखता है, वही देखता है अर्थात् वही परमार्थदर्शी है, क्योंकि आकाशकी भाँति निर्गुण और निर्गुणस्य अकर्तुः निर्विशेषस्य आकाशस्य विशेषतारहित अकर्ता आत्मामें, भेदभावका होना इव भेदे प्रमाणानुपपत्तिः इत्यर्थः ॥२९॥ प्रमाणित नहीं हो सकता। यह अभिप्राय है ॥२९॥ । व्याख्या करते हैं- पुनरपि तद् एव सम्यग्दर्शनं शब्दान्तरेण। फिर भी, उसी यथार्थ ज्ञानकी दूसरे शब्दोंसे प्रपञ्चयति- यदा भूतपृथग्भावमेकस्थमनुपश्यति । तत एव च विस्तारं ब्रह्म संपद्यते तदा ॥ ३० ॥ यदा यस्मिन् काले भूतपृथग्भावं भूतानां जिस समय (यह विद्वान् ) भूतोंके अलग-अलग पृथग्भावं पृथक्त्वम् एकस्थम् एकस्मिन् आत्मनि भावोंको-~~भूतोंकी पृथक्ताको,एकआत्मामें ही स्थित स्थितम् एकस्थम् अनुपश्यति शास्त्राचार्योपदेशतो देखता है अर्थात् शास्त्र और आचार्थके उपदेशसे मत्त्वा आत्मप्रत्यक्षत्वेन पश्यति ‘आत्मैवेदं मनन करके आत्माको इस प्रकार प्रत्यक्षभावसे देखता सर्वम्' ( छा० उ०७।२५।२.) इति । है कि 'यह सब कुछ आत्मा ही है।'