पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/३५९

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MERMINARRAHASIRSANASIRONMENE ................4 ............ शांकरभाष्य अध्याय १४ तमः तृतीयो गुणः अज्ञानजम् अज्ञानाद् जातम् और समस्त देहधारियोंको मोहित करनेवाले अज्ञानजं विद्धि मोहनं मोहकरम् अविवेककर तमोगुणको, यानी जीवोंके अन्तःकरणमें मोह- सर्वदेहिनां सर्वेषां देहवतां प्रमादालस्यनिद्राभिः अविवेकः उत्पन्न करनेवाले तम नामक तीसरे गुणको, तू अज्ञानसे उत्पन्न हुआ जान । हे भारत । वह प्रमादः च आलस्यं च निद्रा व प्रमादालस्य- तमोगुण, (जीवोंको ) प्रमाद, आलस्य और निद्राके निद्रा ताभिः तत् तमो निवनाति भारत ॥८॥ . द्वारा वाँधा करता है ॥८॥ पुनः गुणानां व्यापारः संक्षेपत उच्यते- फिर भी उन गुणोंका व्यापार संक्षेपसे बतलाया जाता है- सत्त्वं सुखे संजयति रजः कर्मणि भारत । ज्ञानमावृत्य तु तमः प्रमादे संजयत्युत ॥ ६॥ सत्त्वं सुखे संजयति संश्लेषयति रजः कर्मणि ! हे भारत! सत्त्वगुण सुखमें नियुक्त करता है और हे भारत संजयति इति वर्तते । ज्ञानं सत्त्वकृतं रजोगुण को नियुक्त किया करता है तथा तमोगुण, विवेकम् आवृत्य आच्छाद्य तु तमः स्वेन सत्त्वगुणसे उत्पन्न हुए विवेक-ज्ञानको, अपने आवरणात्मक स्वभावसे आच्छादित करके फिर आवरणात्मना प्रमादे संजयति उत प्रमादो नाम प्रमादमें नियुक्त किया करता है । प्राप्त कर्तव्यको न प्राप्तकर्तव्याकरणम् ॥९॥ करनेका नाम प्रमाद है ॥९॥ उक्त कार्य कदा कुर्वन्ति गुणा इति उच्यते- ये तीनों गुण उपर्युक्त कार्य का करते हैं ? सो कहते हैं- रजस्तमश्चाभिभूय सत्त्वं भवति रजः सत्त्वं तमश्चैव तमः सत्त्वं रजस्तथा ॥ १० ॥ रजः तमः च उभौ. अपि अभिभूय सत्त्वं हे भारत ! रजोगुण और तमोगुण-इन दोनोंको दवाकर जब सत्त्वगुण उन्नत होता है-बढ़ता है, तब भवति उद्भवति वर्धते यदा तदा लब्धात्मकं सत्वं यह अपने स्वरूपको प्राप्त हुआ सत्वगुण अपने कार्य- खकार्यम् ज्ञानसुखादि आरभते हे भारत । ज्ञान और सुखादिका आरम्भ किया करता है। तथा रजोगुणः सत्त्वं तमः च एव उभौ अपि तथा सत्वगुण और तमोगुण-इन दोनोंको ही दवा: अभिभूय वर्धते यदा तदा कर्मवृष्णादि स्वकार्थम् , कर जब रजोगुण बढ़ता है तब वह 'कोंमें तृष्णा आरभते । आदि' अपने कार्यका आरम्भ किया करता है। तम आख्यो गुणः सत्त्वं रजः च उभौ अपि वैसे ही सत्त्वगुण और रजोगुण इन दोनोंको दबाकर अभिभूय तथा एव वर्धते यदा तदाज्ञानावरणादि जब तम नामक गुण बढ़ता है,तब वह ज्ञानको आच्छी- खकार्यम् आरभते ॥१०॥ दित करना आदि अपना कार्य आरम्भ किया करता है।

  • इस वाक्यमें 'संजयति' (नियुक्त करता है) क्रियाकी पूर्ववाक्यसे अनुवृत्ति की गयी है।