पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/३६४

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श्रीमद्भगवद्गीता कैः लिङ्गः चिद्वैः त्रीन् एतान् व्याख्यातान् हे प्रभो! इन पूर्ववणित तीनों गुणोंसे अतीत- पार हुआ पुरुष किन-किन लक्षणों से युक्त होता है ? गुगान अतीतः अतिक्रान्तो भवति प्रभो। किमाचारः और यह कैसे आचरणवाला होता है अर्थात् उसके कः अस्य आचार इति किमाचारः । कथं केन आचरण कैसे होते हैं ? तथा किस प्रकारसे (किस उपायारे ) मनुष्य इन तीनों गुणोंसे अतीत च प्रकारेण एतान् त्रीन् गुणान् अतिवर्तते ॥ २१॥ हो सकता है ? ॥ २१ ॥ गुणातीतस्य लक्षणं गुणातीतत्वोपायं च इस ( उपर्युक्त ) श्लोकमें अर्जुनने गुणातीतके अर्जुनेन पृष्टः अस्मिन् इलोके प्रश्नद्वयार्थ लक्षण और गुणातीत होने का उपाय पूछा है, उन प्रतिवचनम् - श्रीभगवान् उवाच---यत् तावत् दोनों प्रश्नोंका उत्तर देने के लिये श्रीभगवान् बोले कैः लिङ्गैः युक्तो गुणातीतो भवति इति तत् कि पहले गुणातीत पुरुष किन-किन लक्षणोंसे युक्त होता है सो सुन- प्रकाशं च प्रवृत्तिं च मोहमेव च पाण्डव । न द्वेष्टि संप्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ्क्षति ॥ २२ प्रकाशं च सत्त्वकार्य प्रवृत्तिं च रजकार्य सत्त्वगुणका कार्य प्रकाश, रजोगुणका कार्य मोहम् एव च तमःकार्यम् इति एतानि न द्वेष्टि प्रवृत्ति और तमोगुणका कार्य मोह, ये जब प्राप्त होते हैं अर्थात् भली प्रकार विषयभावसे उपलब्ध संप्रवृत्तानि सम्यग्विषयभावेन उद्भूतानि । होते हैं, तब वह इनसे द्वेष नहीं किया करता । मम तामसः प्रत्ययो जातः तेन अहं मूढः अभिप्राय यह कि 'मुझमें तामसभाव उत्पन्न गया, उससे मैं मोहित हो गया और दुःखरूप तथा राजसी प्रवृत्तिः मम उत्पन्ना दुःखात्मिका राजसी प्रवृत्ति उत्पन्न हुई, उस राजसभावने मुझे तेन अहं रजसा प्रवर्तितः प्रचलितः स्वरूपात ! प्रवृत्त कर दिया, इससे मैं स्वरूपसे विचलित हो कष्टं मम वर्तते यः अयं मत्वरूपावस्थानाद् गया, यह जो अपनी स्वरूप-स्थितिसे विचलित होना है, वह मेरे लिये बड़ा भारी दुःख है । तथा भ्रंशः तथा सात्त्विको गुणः प्रकाशात्मा मां प्रकाशमय सात्त्विकगुण, मुझे विवेकित्व प्रदान विवेकित्वम् आपादयन् सुखे च संजयन् करके और सुखमें नियुक्त करके बाँधता है, इस प्रकार साधारण मनुष्य, अयथार्थदर्शी होनेके कारण, बध्नाति इति तानि वेष्टि असम्यग्दर्शित्वेन । उन गुणोंसे द्वेष किया करते हैं, परन्तु गुणातीत तद् एवं गुणातीतो न द्वेष्टि संप्रवृत्तानि । पुरुष उनकी प्राप्ति होने पर उनसे द्वेष नहीं करता। यथा च साचिकादिपुरुषः सात्त्विकादि- तथा जैसे सात्त्विक, राजस और तामस पुरुष, कार्याणि आत्मानं प्रति प्रकाश्य निवृत्तानि जब सात्त्विक आदि भाव अपना स्वरूप प्रत्यक्ष कराकर निवृत्त हो जाते हैं, तब ( पुनः ) उनको काङ्क्षति न तथा गुणातीतो निवृत्तानि काइति चाहते हैं । वैसे गुणातीत उन निवृत्त हुए गुणों के इत्यर्थः। कार्योंको नहीं चाहता।