पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/३६५

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WWW.***.5.2% 3E womeouTHRETARINEETPORamainamaARE-Rupane ............... शांकरभाष्य अध्याय १४ एतद् न परप्रत्यक्ष लिङ्ग किं तहि स्वात्म- (परन्तु ये सब लक्षण इसरोको प्रत्यक्ष होनेवाले नहीं है । तो कैसे हैं ? अपने आपको ही प्रत्यक्ष प्रत्यक्षत्वाद् आत्मविषयम् एव एतद् लक्षणम् । होने के कारण ये स्वसंवेद्य ही हैं, क्योंकि अपने न हि स्वात्मविषयं द्वेषम् आकाङ्क्षा वा परः आपमें होनेवाले द्वेष या आकांक्षाको इसर नहीं पश्यति ॥२२॥ देख सकता ।। २२ ॥ अथ इदानीं गुणातीतः किमाचार इति अब, गुणातीत पुरुष किस प्रकारके आचरणवाला प्रश्नस्य प्रतिवचनम् आह- होता है, इस प्रश्नका उत्तर देते हैं- उदासीनवदासीनो गुणैर्यो न विचाल्यते । गुणा वर्तन्त इत्येव योऽवतिष्ठति नेङ्गते ॥ २३ ॥ उदासीनवद् यथा उदासीनो न कस्यचिन् उदासीनकी भाँति स्थित हुआ, अर्थात् जैसे पक्षं भजते तथा अयं गुणातीतत्वोपायमागें उदासीन पुरुष किसीका पक्ष नहीं लेता, उसी भावसे गुणातीत होनेके उपायरूप मार्गमें स्थित हुआ अवस्थित आसीन आत्मविद् गुणैः यः संन्यासी जो आत्मज्ञानी-संन्यासी, गुणोंद्वार विवेकज्ञानकी न विचाल्यते विवेकदर्शनावस्थातः । स्थितिसे विचलित नहीं किया जा सकता। तद् एतत् स्फुटीकरोति गुणाः कार्यकरण- इमीको स्पष्ट करते हैं, कि कार्य-करण और विषयों- विषयाकारपरिणता अन्योन्यस्मिन् वर्तन्ते के आकारमें परिणत हुए गुण ही एकमें एक बर्त रहे हैं--जो ऐसा समझकर स्थित रहता है, चलायमान इति यः अत्रतिष्ठति । छन्दोमङ्गभयात् परस्मै- नहीं होता अर्थात् अविचल्भावसे स्वरूपमें ही स्थित पदप्रयोगः । यः अनुतिष्ठति इति वा रहता है । यहाँ छन्दोभङ्ग होनेके भयसे 'आत्मनेपद (अवतिष्ठते) के स्थानमें परस्मैपद' (अवतिष्ठति) का पाठान्तरम् । न इगते न चलति स्वरूपावस्थ प्रयोग किया गया है अथवा 'योऽवतिष्ठति' के स्थानमें एव भवति इत्यर्थः ॥२३॥ योऽनुतिष्टति' ऐसा पाठान्तर समझना चाहिये ॥२३॥ किच- तथा- समदुःखसुखः स्वस्थः समलोष्टाश्मकाञ्चनः । तुल्यप्रियाप्रियो धीरस्तुल्यनिन्दात्मसंस्तुतिः ॥ २४ ॥ समदुःखसुखः समे दुःखसुखे यस्य स जो सुख-दुःखमें समान है अर्थात् सुख और समदुःखमुखः । स्वस्थः स्वे आत्मनि स्थितः दुःख जिसको समान प्रतीत होते हैं, जो स्वस्थ प्रसन्नः। समलोष्टाश्मकाञ्चनो लोष्टं च अश्मा अर्थात् अपने आःम-स्वरूपमें स्थित--प्रसन्न च काञ्चनं च समानि यस्य स समलोष्टाश्म- है, जो समलोष्टाइमकाञ्चन है अर्थात् मिट्टी, पत्थर काञ्चनः। और सुवर्ण जिसके (विचारमें) समान हो गये हैं,