पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/३७४

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श्रीमद्भगवद्गीता यद् धाम वैष्णवं पदं गत्वा प्राप्य न निवर्तन्ते जिस परमधामको यानी वैष्णवपदको पाकर यत् च सूर्यादिः न भासयते तद् धाम पदं मनुष्य पीछे नहीं लौटते और जिसको सूर्यादि ज्योतियाँ प्रकाशित नहीं कर सकतीं, वह मुझ परम मम विष्णोः ॥६॥ । विष्णुका परमधाम-पद है ॥६॥ 'यद्गत्वा न निवर्तन्ते' इति उक्तम् । ननु ५०. जहाँ जाकर फिर नहीं लौटते' यह बात | कही गयी । परन्तु सभी गतियाँ, अन्तमें पुनरागमन- सर्वा हि गतिः आगत्यन्ता संयोगा विप्र- । युक्त होती हैं और सभी संयोग अन्तमें वियोगवाले योगान्ता इति हि प्रसिद्धं कथम् उच्यते होते हैं. यह बात प्रसिद्ध है। फिर यह बात कैसे कही जाती है कि उस धामको प्राप्त हुए तद्धामगतानां नास्ति निवृत्तिः इति । पुरुषोंका पुनरागमन नहीं होता ? शृणु तत्र कारणम्- उ०-उसमें जो कारण है वह सुन- ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः । मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्पति ॥ ७ ॥ मम एव परमात्मनः अंशो भागः अवयव जीवलोकमें, अर्थात् संसारमें, जो जीवरूप एकदेश इति अनर्थान्तरं जीवलोके जीवानां शक्ति, भोक्ता, कर्ता इत्यादि नामोंसे प्रसिद्ध है, वह मुझ परमात्माका ही सनातन अंश है, अर्थात् अंग, लोके संसारे जीवभूतो भोक्ता कर्ता इति भाग, एक देश जो भी कुछ कहो, एक ही प्रसिद्धः सनातनः । अभिनाय है। यथा जलसूर्यकः सूर्यांशो जलनिमित्तापाये जैसे जलमें प्रतीत होनेवाला सूर्यका अंश--- प्रतिबिम्ब, जलरूप निमित्तका नाश होनेपर, सूर्य- सूर्यम् एव गत्वा न निवर्तते तथा अयम् अपि को ही प्राप्त होकर फिर नहीं लौटता वैसे ही उस परमात्माका यह अंश भी, उस परमात्मासे ही अंश तेन एव आत्मना संगच्छति एवम् एव । संयुक्त हो जाता है। फिर नहीं लौटता । यथा वा घटाछुपाधिपरिच्छिन्नोघटाद्याकाश अथवा जैसे घट आदि उपाधिसे परिच्छिन्न घटादिका आकाश, आकाशका ही अंश है और वह आकाशांशः सन् घटादिनिमत्तापाये आकाशं घट आदि निमित्तके नाश होनेपर, आकाशको ही प्राप्य न निवर्तते इति एवम् अत उपपन्नम् प्राप्त होकर फिर नहीं लौटता। वैसे ही इसके विषयमें भी समझना चाहिये । सुतरां 'जहाँ जाकर उक्तम् 'यद्गत्वा न निवर्तन्ते' इति । नहीं लौटते' यह कहना उचित ही है। ननु निरवयवस्य परमात्मनः कुतः अवयव यू०-अवयवरहित परमात्माका अवयव, एक- एकदेशः अंश इति । सावयवत्वे च विनाश- देश, अथवा अंश, कैसे हो सकता है ? और यदि उसे अवयवयुक्त मानें, तो उन अवयवोंका विभाग प्रसङ्गः अवययविभागात् । होनेसे परमात्माके नाशका प्रसंग आ जायगा ।