पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

शांकरभाष्य अध्याय २ २३ नासतः न T इतः च शोकमोही अकृत्या शीतोष्णा- इसलिये भी शोक और मोह न करके शीतोष्णादि- दिसहनं युक्तं यस्मात् --- को सहन करना उचित है, जिससे कि- नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः । उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः॥ १६ ॥ अविद्यमानस्य शीतोष्णादेः वास्तवमें अविद्यमान शीतोष्णादिका और उनके सकारणस्य विद्यते नास्ति भावो | कारणोंका भाव अर्थात् अस्तित्व है ही नहीं, क्योंकि भवनम् अस्तिता । न हि शीतोष्णादि सकारणं | प्रमाणोंद्वारा निरूपण किये जानेपर शीतोष्णादि और प्रमाणैः निरूप्यमाणं वस्तु संभवति । उनके कारण कोई पदार्थ ही नहीं ठहरते । विकारो हि सः। विकारः च व्यभिचरति, क्योंकि वे शीतोष्णादि सब विकार हैं,और विकार- यथा घटादिसंस्थानं चक्षुषा निरूप्यमाणं का सदा नाश होता है । जैसे चक्षुद्वारा निरूपण किया जानेपर घटादिका आकार मिट्टीको छोड़कर और कुछ : मृद्वयतिरेकेण अनुपलब्धेः असत् तथा सर्वो भी उपलब्ध नहीं होता इसलिये असत् है, वैसे ही सभी विकारः कारणव्यतिरेकेण अनुपलब्धः असन् ! विकार कारणके सिवा उपलब्ध न होनेसे असत् हैं। जन्मप्रध्वंसाम्यां प्राक् ऊर्ध्वं च अनुप- क्योंकि उत्पत्तिसे पूर्व और नाशके पश्चात् उन लब्धेः। सबकी उपलब्धि नहीं है। मृदादिकारणस्य तत्कारणस्य च तत्कारण- पू०-मिट्टी आदि कारणका और उसके भी कारण- व्यतिरेकेण अनुपलब्धेः असत्त्वम् । तदसत्त्वे का उसके निजी कारणसे पृथक् उनकी उपलब्धि नहीं होनेसे अभाव सिद्ध हुआ, फिर इसी तरह उसका भी च सर्वाभावप्रसङ्ग इति चेत् । अभाव सिद्ध होनेसे सबके अभावका प्रसङ्ग आ जाता है। न, सर्वत्र बुद्विद्वयोपलब्धेः सद्बुद्धिः असद्- उ०-यह कहना ठीक नहीं, क्योंकि सर्वत्र सत्- बुद्धिः इति । | बुद्धि और असत्-बुद्धि ऐसी दो बुद्धियाँ उपलब्ध होती हैं। यद्विषया बुद्धिः न व्यभिचरति तत् सत्, जिस पदार्थको विषय करनेवाली बुद्धि नष्ट नहीं होती वह पदार्थ सत् है और जिसको विषय यद्विषया बुद्धिः व्यभिचरति तत् असत् इति करनेवाली बुद्धि नष्ट हो जाती है वह असत् है। सदसद्विभागे बुद्धितन्त्रे स्थिते । इस प्रकार सत् और असत्का विभाग बुद्धिके अधीन है। सर्वत्र द्वे बुद्धी सर्वैः उपलभ्येते समाना- सभी जगह समानाधिकरणमें (एक ही अधिष्ठानमें) धिकरणे। सबको दो बुद्धियाँ उपलब्ध होती हैं। न नीलोत्पलवत् सन् घटः सन् पटःसन् हस्ती नील कमलके सदृश नहीं, किन्तु धड़ा है, कपड़ा है, हाथी है, इस तरह सब जगह दो-दो इति एवं सर्वत्र । बुद्धियाँ उपलब्ध होती हैं। तयोः बुद्धयोः घटादिबुद्धिः व्यभिचरति, उन दोनों बुद्धियोंमेंसे घटादिको विषय करने- तथा च दर्शितम् । न तु सद्बुद्धिः। वाली बुद्धि नष्ट हो जाती है, यह पहले दिखलाया | जा चुका है परन्तु सत्-बुद्धि नष्ट नहीं होती।

  • अर्थात् 'नीलोत्पलम्' इस ज्ञानमें जैसे कमलमें कमलत्वकी और नीलापनकी दो बुद्धियाँ होती हैं

उसी प्रकार गुण-गुणी-भावसे यहाँ दो बुद्धियाँ नहीं ली गयी हैं किन्तु मृगतृष्णका भ्रान्तिके कारण जैसे अधिष्ठानसे अतिरिक्त जलबुद्धि' भी रहती है उसी तरहकी दो बुद्धियाँ दिखायी गयी हैं।