पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/४०

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श्रीमद्भगवद्गीता चारात्।

तस्मात् घटादिबुद्धिविषयः असन् व्यभि- अतः घटादि बुद्धिका विषय ( घटादि ) असत् चारात्, न तु सद्बुद्धिविषयः अव्यभि- | है क्योंकि उसका व्यभिचार होता है। परन्तु सत्- बुद्धिका विषय (अस्तित्व ) असत् नहीं है, क्योंकि उसका व्यभिचार नहीं होता। घटे विनष्टे घटबुद्धौ व्यभिचरन्त्यां सद्- पू०-घटका नाश हो जानेपर घटविषयक बुद्धिः अपि व्यभिचरति इति चेत् । बुद्धिके नष्ट होते ही सत्-बुद्धि भी तो नष्ट हो जाती है। न, पटादौ अपि सद्बुद्धिदर्शनात् । विशेषण- उ०-यह कहना ठीक नहीं। क्योंकि बस्त्रादि विषया एव सा सद्बुद्धिः। अन्य वस्तुओंमें भी सत्-बुद्धि देखी जाती है । वह सत्-बुद्धि केवल विशेषणको ही विषय करनेवाली है। सद्बुद्धिवत् वटबुद्धिः अपि घटान्तरे दृश्यते पू०-सत्-बुद्धिकी तरह घट-बुद्धि भी तो दूसरे इति चेत् । घटमें दीखती है ! न, पटादौ अदर्शनात् । उ०-यह ठीक नहीं,क्योंकि वस्त्रादिमें नहीं दीखती। सद्बुद्विरपि नष्टे घटे न दृश्यते इति पू०-घटका नाश हो जानेपर उसमें सत्-बुद्धि चेत् । भी तो नहीं दीखती। न, विशेष्याभावात् । सद्बुद्धिः विशेषण- उ०--यह ठीक नहीं क्योंकि (वहाँ) घटरूप विषया सती विशेष्याभावे विशेषणानुपपत्तौ विशेष्यका अभाव है । सत्-बुद्धि विशेषणको विषय करनेवाली है सो जब घटरूप विशेष्यका अभाव किंविषया स्यात्, न तु पुनः सद्बुद्धेः विषया- | हो गया बिना विशेष्यके विशेषणकी अनुपपत्ति होनेसे भावात् । वह (सत्-बुद्धि) किसको विषय करे? पर विषयका अभाव होनेसे सत्-बुद्धिका अभाव नहीं होता। एकाधिकरणत्वं घटादिविशेष्याभाचे न पू०-घटादि विशेष्यका अभाव होनेसे युक्तम् इति चेत् । एकाधिकरणता ( दोनों बुद्धियोंका एक अधिष्ठानमें होना ) युक्तियुक्त नहीं होती। न, इदम् उदकम् इति मरीच्यादौ अन्यतरा उ०-यह ठीक नहीं, क्योंकि मृगतृणिकादिमें भावे अपि सामानाधिकरण्यदर्शनात् । अधिष्ठानसे अतिरिक्त अन्य वस्तुका ( जलका) अभाव है तो भी 'यह जल है' ऐसी बुद्धि होनेसे समानाधिकरणता देखी जाती है ।* तसाद देहादेः द्वन्द्वस्य च सकारणस्य इसलिये असत् जो शरीरादि एवं शीतोष्णादि असतो न विद्यते भाव इति। द्वन्दु और उनके कारण हैं उनका किसीका भी भाव- अस्तित्व नहीं है। तथा सतः च आत्मनः अभावः अविद्य- वैसे ही सत् जो आत्मतत्त्व है उसका अभाव मानता न विद्यते सर्वत्र अव्यभिचारात् इति | अर्थात् अविद्यमानता नहीं है । क्योंकि वह सर्वत्र अवोचाम। अटल है यह पहले कह आये हैं।

  • समानाधिकरणताका अभिप्राय दो वस्तुओंकी प्रतीतिसे है, वास्तविक सत्तासे नहीं।