पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/३९५

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SASRAMERA शांकरभाष्य अध्याय १७ तेषाम् एवंभूलानां निष्ठा तु का कृष्ण तत्वम् हे कृष्णा इस प्रकारके उन मनुष्योंकी निष्ठा कौन- आहे ना तनः किं सत्यं निशा अवस्थानम् ती है ? साविक है ? राजस है ? अथवा तामत है ? आहोखिद् रजा अथवा तमः । एतद् उक्तं यानी उनकी स्थिति साच्चिकी है या राजसी या भवति या ते देवादिविषया पूजा सा कि तानसी है ? कहनेका अभिप्राय यह है कि उनकी साविकी आहोस्विद् राजी उत तामसी जो देवादिविषयक पूजा है, वह सात्विकी है ? राजती है? अपवा तामसी है ? ॥ १॥ सामान्यविषयः अयं प्रश्नोन अप्रविभज्य यह प्रश्न लाधारण मनुष्योंके विषयमें है तो प्रतिवचनम् अर्हति इति- भी इसका उत्तर बिना विभाग किये देना उचित श्रीभगवानुवाच- नहीं, इस अभिप्रायले श्रीभगवान् बोले- त्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा । सात्त्विकी राजसी चैव तामसी चेति तां शृणु ॥२॥ त्रिविधा त्रिपकारा भवति श्रद्धा । यस्या जिल निष्टाके विषय में तु पृछता है, मनुष्योंकी वह निष्ठायां त्वं पृच्छसि देहिनां सा स्वभावजा । खभावजन्य श्रद्धा-जन्मान्तरमें किये हुए धर्म-अधर्म आदिके जो संस्कार मृत्यु के समय प्रकट हुआ करते हैं जन्मान्तरकृतो धर्मादिसंस्कारो मरणकाले उनके समुदायका नाम स्वभाव है, उससे उत्पन्न अभिव्यक्तः स्वभाव उच्यते ततो जाता हुई श्रद्धा--तीन प्रकारको होती है । सत्वगुगसे उत्पन्न हुई देवपूजादिविषयक श्रद्धा सात्विकी है, खभावजा । सात्त्विकी सत्त्वनिर्छता देवपूजादि- : रजोगुणसे उत्पन्न हुई यक्षराक्षसादिकी पूजा- विषया, राजसी रजोनिवृता यक्षरक्षःपूजादि- विषयक श्रद्धा राजसी है और तमोगुणसे उत्पन्न विषया तामसी तमोनिर्धता प्रेतपिशाचादि- हुई प्रेत-पिशाच आदिकी पूजाविषयक श्रद्धा तामसी है। ऐसे तीन प्रकारकी श्रद्धा होती है। उस पूजाविषया एवं त्रिविधा ताम् उच्यमानां आगे कही जानेवाली ( तीन प्रकारकी ) श्रद्धाको श्रद्धां शृणु ॥२॥ तू सुन ॥२॥ सा. एवं त्रिविधा भवति- वह श्रद्धा इस तरह तीन प्रकारकी होती है- सत्त्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत । श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छ्रद्धः स एव सः ॥ ३ ॥ सत्त्वानुरूपा विशिष्टसंस्कारोपेतान्त:- है भारत ! सभी प्राणियोंकी श्रद्धा ( उनके ) करणानुरूपा सर्वस्व प्राणिजातस श्रद्धा भिन्न-भिन्न संस्कारोंसे युक्त अन्तःकरणके अनुरूप भवति भारत । होती है। यदि एवं ततः किं स्याद् इति उच्यते- यदि ऐसा है तो उससे क्या होगा? इसपर कहते हैं--