पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/४०९

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TRENESNEHARAS सINDAARARIABAvaramalinesirmicines W milanmya....:::. शांकरभाष्य अध्याय १८ . गुणानां कर्म न एव किंचित् करोमि इति 'सारे कर्म गुटोंक हैं, मैं कुछ भी नहीं करता हि ते संन्यसन्ति । 'सर्वकर्माणि मनसा संन्यस्य ऐसा समझकर ही वे कर्मसंन्यास करते हैं, क्योंकि 'सब कमाँ को मनले त्यानकर' इत्यादि बाक्यों- इत्यादिभिःहि तत्वविदः संन्यासप्रकार उक्तः। द्वारा तत्वज्ञानियोंके संन्यासका प्रकार ( ऐसा ही) बतलाया गया है। तस्माद् ये अन्ये अधिकृताः कर्मणि अतः जो अन्न आत्मज्ञानरहित कर्माधिकारी अनात्मविदो येषां च मोहात् त्यागः संभवति मनुष्य हैं, जिनके द्वारा मोहपूर्वक या शारीरिक क्लेशके भयसे कमोंका त्याग किया जाना सम्भव है, वे ही कायक्लेशभयात् च ते एव तामसा त्यागिनो तामस और राजस त्यागी हैं ! ऐसा कहकर, आत्म- ज्ञानरहित कर्माधिकारियोंके कर्म-फल-त्यागकी स्तुति राजसाः च इति निन्द्यन्ते कर्मिणाम् अनात्म- करनेके लिये, उन राजस-तामस त्यागियोंकी ज्ञानां कर्मफलत्यागस्तुत्यर्थम् । निन्दा की जाती है। "सर्वारम्भपरित्यागी' 'मौनी' 'संतुष्टो येन क्योंकि 'सर्यारम्भपरित्यागी' 'मौनी' 'संतुष्टो येन केनचित् अनिकेतः स्थिरमतिः' इत्यादि केनचित्' 'अनिकेतः स्थिरमतिः' इति गुणातीत- विशेषणोंसे (बारहवें अध्यायनें ; और गुणातीतके लक्षणे च परमार्थसंन्यासिनो विशेषितत्वात् । लक्षणोंमें भी यथार्थ संन्यासीको पृथक् करके कहा गया है, तथा 'ज्ञानकी जो परानिष्ठा है' इस वक्ष्यति च 'ज्ञानस्य या परा निष्ठा' इति । तस्माद् प्रकरणमें भी यही बात कहेंगे, इसलिये यहाँ यह ज्ञाननिष्ठाः संन्यासिनो न इह विवक्षिताः। विवेचन ज्ञाननिष्ठ संन्यासियोंके विषयमें नहीं है। कर्मफलत्याग एव सात्विकत्वेन गुणेन कर्मफलत्याग ( रूप संन्यास ) ही सात्विकतारूप गुणसे युक्त होने के कारण यहाँ तामस-राजस त्याग- तामसत्वाद्यपेक्षया संन्यास उच्यते न मुख्यः की अपेक्षा गौणरूपसे संन्यास कहा जाता है । सर्वकर्मसंन्यासः। यह ( सात्त्विक त्याग) सर्वकर्मसंन्यासरूप मुख्य संन्यास नहीं हैं। सर्वकर्मसंन्यासासंभवे च 'न हि देहभृता' -नहि देहभृता' इत्यादि हेतुयुक्त कयनसे यह पाया जाता है, कि स्वरूपसे सर्व कर्मोंका संन्यास इति हेतुवचनाद् मुख्य एव इति चेत् । असम्भव है, अतः कर्मफलत्याग ही मुख्य संन्यास है। न, हेतुवचनस्य - स्तुत्यर्थत्वात् । यथा उ०-यह कहना ठीक नहीं, क्योंकि यह 'त्यागाच्छान्तिरनन्तरम्' इति कर्मफलत्यागस्तुतिः जिस प्रकार पूर्वोक्त अनेक साधनोंका अनुष्ठान हेतुयुक्त कथन कर्मफलत्यागकी स्तुति के लिये है। एवं यथोक्तानेकपक्षानुष्ठानाशक्तिमन्तम् करनेमें असमर्थ और आत्मज्ञानरहित अर्जुन- के लिये विहित होनेके कारण अर्जुनम् अझं प्रति विधानात्, तथा इदम् अपि च्छान्तिरनन्तरम्' यह कहना कर्मफलत्यागकी 'त्यागा-