पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/४१२

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श्रीमद्भगवद्गीता सासङ्गस्य कलार्थिनो बन्धहेतव एतानि आसक्तियुक्त और फलेच्छुक मनुष्योंके लिये यद्यपि ये ( यज्ञ, दान और तपरूप) कर्म बन्धनके अपि कर्माणि मुमुक्षोः कर्तव्यानि इति अपि- कारण हैं, तो भी मुमुक्षुको ( फल-आसक्तिसे रहित शब्दस्य अर्थो न तु अन्यानि कर्माणि अपेक्ष्य होकर) करने चाहिये, यही 'अपि' शब्दका अभिप्राय है । यहाँ ( यज्ञ, दान और तपसे अतिरिक्त) एतानि अपि इति उच्यते । अन्य (काम्य ) कोंको लक्ष्य करके 'एतानि' के साथ 'अपि' शब्दका प्रयोग नहीं है। अन्ये वर्णयन्ति नित्यानां कर्मणां फला- कुछ अन्य टीकाकार कहते हैं, कि नित्यकर्मों के भावात् सङ्गं त्यक्त्वा फलानि च इति न | फलका अभाव होनेके कारण उनको फल और आसक्ति छोड़कर कर्तव्य बतलाना नहीं बन सकता, उपपद्यते । एतानि अपि इति यानि काम्यानि (अतः) 'एतान्यपि' इस पदका अभिप्राय यह है कि कर्माणि नित्येभ्यः अन्यानि एतानि अपि जो नित्यकर्मों से अतिरिक्त काम्य कर्म हैं, वे भी कर्तव्यानि किमुत यज्ञदानतपांसि नित्यानि करने चाहिये, फिर यज्ञ, दान और तपरूप 'नित्य- इति । कोंके विषयमें तो कहना ही क्या है। तद् असत्, नित्यानाम् अपि कर्मणां फल- यह अर्थ ( करना) ठीक नहीं, क्योंकि 'यशो वत्त्वस्य उपपादितत्वात् । 'यलो दानं तपश्चैव दानं तपश्चैव पावनानि' इत्यादि वचनोंसे 'नित्य- पावनानि' इत्यादिवचनेन । कर्मोंका भी फल होता है' यह सिद्ध किया गया है। नित्यानि अपि कर्माणि बन्धहेतुत्वाशङ्कया नित्यकर्मोको भी बन्धनकारक होनेकी आशंकासे छोड़नेकी इच्छा रखनेवाले सुमुक्षुकी प्रवृत्ति काम्य- जिहासोः मुमुक्षोः कुतः काम्येषु प्रसङ्गः । कर्मों में कैसे हो सकती है? 'दुरेण ह्यवरं कर्म' इति च निन्दितत्वात् इसके सिवा 'सकाम कर्म अत्यन्त निकृष्ट है' इस कथनमें काम्यकर्मोकी निन्दा की जानेके 'यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र' इति च काम्यकर्मणां | कारण और 'यज्ञार्थ कर्मके अतिरिक्त अन्य कर्म बन्धनकारक हैं' इस कथनसे काम्यकर्म बन्धन- बन्धहेतुत्वस्य निश्चितत्वात्, 'त्रैगुण्यविषया कारक माने जानेके कारण, एवं 'वेद त्रिगुणात्मक (संसार) को विषय करनेवाले हैं 'तीनों वेदोंको वेदाः 'विद्या मां सोमपाः' क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोके जोननेवाले सोमरस पीनेवाले' 'पुण्य क्षीण होनेपर मृत्युलोकमें आ जाते हैं। ऐसा कहा विशन्ति' इति च दूरव्यवहितत्वात् च न जानेके कारण और साथ ही काम्यकर्मोका विषय बहुत दूर व्यवधानयुक्त होनेके कारण भी ( यह सिद्ध काम्येषु एतानि अपि इति व्यपदेशः ॥६॥ होता है कि) एतान्यपि' यह कथन काम्यकर्मोके विषयमें नहीं है ॥६॥ .