पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/४२०

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HTTEN श्रीमद्भगवद्गीता तत्र इति प्रकृतेन संबध्यते, एवं सति, एवं 'तत्र' शब्द प्रकरणसे सम्बन्ध जोड़ता है ! यथोक्तः पञ्चभिः हेतुभिः निर्वत्ये सति कर्मणि । ऐसा होनेसे, यानी पहले बतलाये हुए पाँच कारणोंद्वारा ही समस्त कर्म सिद्ध होते हैं, इसलिये, तत्र एवं सति इति दुर्मतित्वस्य हेतुत्वेन जो अज्ञानी पुरुष, वेदान्त और आचार्यके उपदेशद्वारा संबध्यते । तत्र तेषु आत्मानम् अनन्यत्वेन ! तथा तर्कद्वारा संस्कृतबुद्धि न होनेके कारण, उन अविद्यया परिकल्प्य तैः क्रियमाणस्य कर्मणः | अधिष्ठानादि पाँचों कारणोंके साथ अविद्यासे आत्मा- अहम् एव कर्ता इति कर्तारम् आत्मानं केवलं शुद्धं की एकता मानकर, उनके द्वारा किये हुए कर्मोका 'मैं ही करता हूँ' इस प्रकार केवल-शुद्ध आत्माको तु यः पश्यति अविद्वान्, कसात, वेदान्ताचार्यों- ( उन कर्मोका) कर्ता समझता है, (वह वास्तवमें पदेशन्यायैः अकृतबुद्धित्वाद् असंस्कृतबुद्धित्वात्। कुछ भी नहीं समझता )। यः अपि देहादिव्यतिरिक्तात्मवादी अन्यम् तथा आत्माको शरीरादिसे अलग माननेवाला भी, जो शरीरादिसे अलग केवल आत्माको ही कर्ता आत्मानम् एव केवलं कर्तारं पश्यति असौ अपि समझता है, वह भी अकृतबुद्धि ही है। अतः अकृतबुद्धिः एव अतः अकृतबुद्धित्वाद् न स | असंस्कृतबुद्धि होनेके कारण, वह भी वास्तव में आत्माका या कर्मका तत्त्व नहीं समझता, यह पश्यति आत्मनः तत्वं कर्मणो वा इत्यर्थः । अभिप्राय है। अतः दुर्मतिः कुत्सिता विपरीता दुष्टा इसलिये वह दुर्बुद्धि है । जिसकी बुद्धि कुत्सित, विपरीत, दुष्ट और बारंबार जन्म-मरण देने में अजस्रं जननमरणप्रतिपत्तिहेतुभूता मतिः कारणरूप हो उसे दुर्बुद्धि कहते हैं। ऐसा मनुष्य अस्य इति दुर्मतिः स पश्यन् अपि न पश्यति, देखता हुआ भी वास्तवमें नहीं देखता । जैसे तिमिररोगवाला अनेक चन्द्र देखता है, या जैसे यथा तैमिरिकः अनेकं चन्द्रम्, यथा वा अभ्रेषु बालक दौड़ते हुए बादलोंमें चन्द्रमाको दौड़ता हुआ धावत्सु चन्द्रं धावन्तम्, यथा वा वाहने उपविष्टः देखता है, अथवा जैसे (पालकी आदि) किसीसवारी- पर चढ़ा हुआ मनुष्य दूसरोंके चलनेमें अपना चलना अन्येषु धावत्सु आत्मानं धावन्तम् ॥१६॥ समझता है (वैसा ही उसका समझना है)॥१६॥ को पुनः सुमतिः यः सम्यक् पश्यति इति तो फिर जो वास्तबमें देखता है (ऐसा) सुबुद्धि उच्यते- कौन है ? इसपर कहते हैं- यस्य नाहंकृतो भावो बुद्धिर्यस्य न लिप्यते । हत्वापि स इमाँल्लोकान्न हन्ति न निबध्यते ॥ १७ ॥

  • 'तत्र एवं सति' यह वाक्य दुर्मतित्वमें हेतुरूपसे सम्बन्ध रखता है ।