पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/४२१

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meanAELEBRAINERIME- शांकरभाष्य अध्याय १८ यत्य शास्त्राचार्योपदेशन्यायसंस्कृतात्मनो शास्त्र और आचार्यके उपदेशसे तथा न्याय न भवति अहंकृतः अहं कर्ता इति एवंलक्षणो जिसका अन्तःकरण भलीप्रकार शुद्ध-संस्कृत हो भावो भावना प्रत्यय एते एव पञ्चाधिष्ठानादयः । इस प्रकारकी भावना--प्रतीति नहीं होती, गया है, ऐसे जिस पुरुषके अन्तःकरणमें मैं कर्ता अविद्यया आत्मनि कल्पिताः सर्वकर्मणां जो ऐसा समझता है कि 'अविद्यारी आमामें अध्या- कर्तारो न अहम्, अहं तु तद्व्यापाराणां साक्षि- रोपित, ये अधिष्टानादि पाँच हेतु ही समन्त कर्मोक भूतः 'अप्राणो ह्यमनाः शुम्रोऽक्षरात्यरतः परः कर्ता हैं, मैं नहीं हूँ, मैं तो केवल उनके व्याशरोंका (मु० उ० २।१।२) केवल अविक्रिय साक्षीमात्र, 'प्राणों से रहित, मनले रहित, शुद्ध, श्रेष्ठ, अक्षरसे भी पर केवल और अविक्रिय आत्म- इति एवं पश्यति इति एतत् । स्वरूप हूँ। बुद्धिः अन्तकरणं यस्य आरमन उपाधि- तथा जिसकी बुद्धि यानी आत्माका उपाधि- भूता न लिप्यते न अनुशायिनी भवति इदम् स्वरूप अन्तःकरण, लित नहीं होता—अनुताप अहम् अकार्ष तेन अहं नरकं गमिष्यामि इति नहीं करता, यानी 'मैंने अमुक कार्य किया है उससे मुझे नरक जाना पड़ेगा इस प्रकार जिसकी बुद्धि एवं यस्य बुद्धिः न लिप्यते स सुमतिः स लिप्त नहीं होती, वह सुबुद्धि है; वही वास्तवमें पश्यति । देखता है। हत्वा अपि स इमान् लोकान् सर्वान् प्राणिन ऐला ज्ञानी इन समस्त लोकोंको अर्थात् सत्र इत्यर्थः । न हन्ति हननक्रियां न करोति प्राणियोंको मारकर भी ( वास्तबमें ) नहीं मारता न निबध्यते न अपि तत्कार्येण अधर्मकलेन अर्थात् हननक्रिया नहीं करता और उसके संबध्यते। परिणामसे अर्थात् पापके फलसे भी नहीं बँधता । ननु हत्वा अपि न हन्ति इति विप्रतिषिद्धम् पू०-यद्यपि यह (ज्ञानकी) स्तुति है, तो भी यह कहना सर्वथा विपरीत है कि 'मारकर भी नहीं उच्यते यद्यपि स्तुतिः। मारता । न. एष दोषः, लौकिकपारमार्थिकदृष्टथ- उ०-यह दोष नहीं है, क्योंकि लौकिक और पारमार्थिक इन दो दृष्टियोंकी अपेक्षासे ऐसा कहना पेक्षया तदुपपत्तेः। बन सकता है। देहाद्यात्मबुद्धथा हन्ताहम् इति लौकिकी शरीर आदिमें आत्मबुद्धि करके 'मैं मारनेवाला दृष्टिम् आश्रित्य हत्वा अपि इति आह, हूँ' ऐसा माननेवाले लौकिक मनुष्योंकी दृष्टिका आश्रय लेकर 'मारकर भी यह कहा है और पूर्वोक्ता यथादर्शितां पारमार्थिकी दृष्टिम् आश्रित्य न पारमार्थिक दृष्टिका आश्रय लेकर न मारता है और हन्ति न निबध्यते इति तद् उभयम् उपपद्यते न बँधता है' यह कहा है । इस प्रकार ये दोनों एव। कथन बन सकते हैं।