पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/४२४

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श्रीमद्भगवद्गीता अथ इदानी कर्मणां प्रवर्तकम् उच्यते-- इस प्रकार शास्त्र के आशयका उपसंहार करके अब कर्मों का प्रवर्तक बतलाया जाता है- ज्ञानं ज्ञेयं परिज्ञाता त्रिविधा कर्मचोदना । करणं कर्म कर्तेति त्रिविधः कर्मसंग्रहः ॥ १८ ॥ ज्ञानं ज्ञायते अनेन इति सर्व विषयम् अविशेषेण ज्ञाल-जिसके द्वारा कोई पदार्थ जाना जाय । । यहाँ ज्ञान शब्दसे सामान्य-भावसे सर्व-पदार्थ-विषयक उच्यते । तथा ज्ञेयं ज्ञातव्यं तद् अपि सामा- ज्ञान कहा गया है । वैसे ही ज्ञेय अर्थात् जाननेमें न्येन एव सर्वम् उच्यते । तथा परिज्ञाता उपाधि- आनेवाला पदार्थ, यह भी सामान्य-भावसे समस्त- लक्षण: अविद्याकल्पितो मोक्ता इति एतत् का ही वर्णन है। तथा परिज्ञाता अर्थात् उपाधि- युक्त अविद्याकल्पित मोक्ता, इस प्रकार जो यह इन त्रयम् एषाम् अविशेषेण सर्वकर्मणां प्रवर्तिका तीनोंका समुदाय है, यही सामान्य-भावसे समस्त त्रिविधा त्रिपकारा कर्मचोदना । कर्मोकी प्रवर्तक तीन प्रकारकी 'कर्मचोदना' है। ज्ञानादीनां हि त्रयाणां संनिपाते हानो- क्योंकि उक्त ज्ञान आदि तीनोंके सम्मिलित होनेपर ही त्याग और ग्रहण आदि जिनके प्रयोजन पादानादिप्रयोजनः सर्वकर्मारम्भः स्यात् । हैं, ऐसे समस्त कर्मों का आरम्भ होता है । ततः पञ्चभिः अधिष्ठानादिभिः आरब्धं अब अविष्ठानादि पाँच हेतुओंसे जिसकी उत्पत्ति है, तथा मन, वाणी और शरीररूप आश्रयोंके चाङ्मनःकायाश्रयभेदेन त्रिधा राशीभूतं त्रिघु | भेदसे जिसके तीन वर्ग किये गये हैं, ऐसे समस्त कर्म, करण आदि तीन कारकोंमें संगृहीत हैं ! यह बात करणादिषु संगृह्यते इति एतद् उच्यते---- | बतलायी जाती है- करणं क्रियते अनेन इतिवाचं श्रोत्रादि,अन्त:- 'करण'-जिसके द्वारा कर्म किया जाय, अर्थात् श्रोत्रादि दश बाह्य इन्द्रियाँ और बुद्धि आदि चार स्थं बुद्धयादि, कर्म ईप्सिततमं कर्तुः क्रियया | अन्तःकरण। 'कर्म'-जो कर्ताका अत्यन्त इष्ट हो और क्रियाद्वारा संपादन किया जाय । 'कर्ता'-श्रोत्रादि व्याप्यमानम् , कर्ता करणानां व्यापारबिता करणों को अपने-अपने व्यापारमें नियुक्त करनेवाला उपाधिस्वरूप जीव । इस प्रकार यह त्रिविध कर्म- उपाधिलक्षण इति त्रिविधः विप्रकारः कर्मसंग्रहः । संग्रह है। संगृह्यते अस्मिन् इति संग्रहः कर्मणः संग्रहः जिसमें कुछ संगृहीत किया जाय उसका नाम कर्मसंग्रहः । कर्म एषु हि त्रिषु समवैति तेन संग्रह है, अतः कोंके संग्रहका नाम कर्मसंग्रह है क्योंकि इन तीन कारकोंमें ही कर्म संगृहीत है। अयं त्रिविधः कर्मसंग्रहः॥१८॥ इसलिये यह तीन प्रकारका कर्म-संग्रह है ॥१८॥