पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/४३३

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SATTA AMAALENamahemamNAAMIRMANAND... AISISTiminishpana danloo ...................: MIRSINHMM ...HawinAORATime, Insaantayseena TATANTRAVELiye.com HERIAL "3717....... शांकरभाष्य अध्याय १८ यया स्वप्ने निद्रां भयं त्रासं शोक विषादन् जिस वृत्तिके द्वारा मनुष्य स्वप्न---- -निद्रा, अवसाद त्रिषण्यातां नई विध्यसेवाम् आत्मनो भय-त्रास, शोक-दुःख और मदको नहीं छोड़ता। अर्थात् विषय सेवनको ही अपने लिये बहु मन्यमानो मत्त इव मदम् स्त्र च मनसि बहुत बड़ा पुरुषार्थ मानकर, उन्मत्तकी भाँति नित्यम् एव कर्तव्यरूपतया कुर्वन न विमुञ्चति · मदको ही मनमें सदा कर्तव्यरूपसे समझता हुआ, जो कुत्सित बुद्धिवाला मनुष्य, इन सबको नहीं धारयति एव दुर्मेवाः कुस्तितमेधाः पुरुषो या छोड़ना। यानी धारण ही किये रहता है । उसकी तस्य वृतिः या सा तामसी मता ||३५|| जो धृति है, वह तामसी मानी गयी है ।। ३५ ॥ गुणभेदेन क्रियाणां कारकाणां च त्रिधा भेद गुण-भेदके अनुसार क्रियाओं और कारकोंके उक्तः अथ इदानीं फलस्य च सुखस्स त्रिधा तीन-तीन प्रकारके भेद कहे; अब फलरूप सुखके मेद उच्यते- तीन तरहके भेद कहे जाते हैं--- सुखं त्विदानी त्रिविधं शृणु मे भरतर्षभ । अभ्यासाद्रमते यत्र दुःखान्तं च निगच्छति ॥ ३६ ॥ सुखं तु इदानीं त्रिविधं शृणु समाधानं कुरु हे भरतर्षभ ! अब तू मुझसे तीन तरहके सुखको भी सुन, अर्थात् सुननेके लिये चित्तको इति एतद् मे मम भरतर्षभ । समाहित कर । अभ्यासात् परिचयाद् आवृत्ते रमते रति जिस सुखमें मनुष्य अभ्याससे रमता है अर्थात् जिस सुखके अनुभवों बारंबार आवृत्ति करनेसे प्रतिपद्यते यत्र यसिन् सुखानुभवे दुःखान्तं च मनुष्यका प्रेम हुआ करता है और जहाँ मनुष्य दुःखावसानं दुःखोपशमं च निगच्छति निश्चयेन ( अपने ) दुःखोंका अन्त पाता है अर्थात् जहाँ उसके सारे दुःखोंकी निःसन्देह निवृत्ति हो जाया प्राप्नोति ॥ ३६॥ करती है ॥ ३६॥ यत्तदने विषमित्र परिणामेऽमृतोपमम् । तत्सुखं सात्त्विकं प्रोक्तमात्मबुद्धिप्रसादजम् ।। ३७ ॥ यत् तत् सुखम् अग्रे पूर्व प्रथमसंनिपाते जो ऐसा सुख है, वह पहले-पहल---ज्ञान, ज्ञानवैराग्यध्यानसमाध्यारम्भे अत्यन्तायास- वैराग्य, ध्यान और समाधिके आरम्भकालमें, अत्यन्त श्रम-साध्य होनेके कारण, विपके सदृश-दुःखात्मक पूर्वकत्वाद् विषम् इव दुःखात्मकं भवति, परिणाम होता है । परन्तु परिणाममें वह ज्ञान-वैराग्यादिवे ज्ञानवैराग्यादिपरिपाकजं सुखम् अमृतोपमम् । ' परिपाकसे उत्पन्न हुआ सुख, अमृतके समान है