पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/४३५

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....... RANA MarwadHERMANEERammanSMSANE:: KisahSSEN DAARENT PREZI ............. mine-.:::...-:-." HTATEGurmemadamirmir:- Imandarmere wry शांकरभाष्य अध्याय १८ अथ इदानी प्रकरणोपसंहारार्थः श्लोक इसके उपरान्त अब प्रकरणका अपहार करने आरभ्यते-- वाला श्लोक कहा जाता है- न तदस्ति पृथिव्यां वा दिवि देवेषु वा पुनः । सत्त्वं प्रकृतिजैर्मुक्तं यदेभिः स्यात्रिभिर्गुणैः ॥ ४०॥ न तद् अस्ति तद् न अस्ति पृथिव्यां या ऐसा कोई सत्त्व, अर्थात् मनुष्यादि प्रागी या मनुष्यादि सत्त्वं प्राणिजातम् अन्यद् वा अन्य कोई भी प्राणरहित वस्तुमात्र, पृथिवीने, स्वर्ग अप्राणिजातं दिवि देवेषु वा पुनः सत्त्वं प्रकृतिजैः अथवा देवताओंमें भी नहीं है, जो कि इन प्रकृतिसे प्रकृतितो जातै एभिः त्रिभिः गुणैः सत्चादिभिः उत्पन्न हुए सत्त्वादि तीनों गुणोंसे मुक्त अर्थात् मुक्तं परित्यक्तं यत् स्याद् भवेद् न तद् अस्ति रहित हो ? ऐसा कोई नहीं है इस पूर्वक पदसे इति पूर्वेण संबन्धः ॥ ४० ॥ इस वाक्यका सम्बन्ध है।॥ ४०॥ सर्वः संसारः क्रियाकारकफललक्षणः सत्त्व- क्रिया, कारक और फल ही जिसका स्वरूप है, ऐसा यह सारा संसार सत्त्व, रज और तम-इन रजस्तमोगुणात्मकः अविद्यापरिकल्पितः समूलः तीनों गुणोंका ही विस्तार है, अविद्यासे कल्पित है अनर्थ उक्तो वृक्षरूपकल्पनया च 'उर्ध्वमूलम्' और अनर्थरूप है, ( पन्द्रहवें अध्यायमें ) वृक्षरूपकी कल्पना करके 'ऊर्ध्वमूलम्' इत्यादि वाक्योंद्वास इत्यादिना। मूलसहित इसका वर्णन किया गया है । तंच 'असङ्गशस्त्रेण दृढेन छित्त्वा ततः पदं तथा यह भी कहा है कि उसको दृढ़ असशस्त्र- द्वारा छेदन करके उसके पश्चात् उस परम पदको तत् परिमार्गितव्यम्' इति च उक्तम् । खोजना चाहिये। तत्र च सर्वस्य त्रिगुणात्मकत्वात् संसार- उसमें यह शंका होती है कि तब तो सब कुछ कारणनिवृत्त्यनुपपत्तौ प्राप्तायां यथा तन्निवृत्तिः तीनों गुणोंका ही कार्य होनेसे संसारके कारणकी निवृत्ति नहीं हो सकती । इसलिये जिस उपायसे स्थात् तथा वक्तव्यम् । उसकी निवृत्ति हो, वह बतलाना चाहिये। सर्वः च गीताशास्त्रार्थ उपसंहर्तव्य तथा सम्पूर्ण गीताशास्त्रका इस प्रकार उपसंहार भी किया जाना चाहिये कि परम पुरुषार्थकी एतावान् एव च सर्वो वेदस्मृत्यर्थः पुरुषार्थम् सिद्धि चाहनेवालोंके द्वारा अनुष्टान किये जाने- योग्य यह इतना ही समस्त वेद और स्मृतियोंका इच्छद्भिः अनुष्ठेय इति एवम् अर्थं च ब्राह्मणक्ष- अभिप्राय हैं अतः इस अभिप्रायसे ये 'ब्राह्मण- त्रियविशाम् इत्यादिः आरम्यते- क्षत्रियविशाम्' इत्यादि श्लोक आरम्भ किये जाते हैं-