पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/४३६

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श्रीमद्भगवद्गीता शूद्राणाम् असमासकरणम् एकजातित्वे सति अर्थात् परस्पर विभागपूर्वक निश्चित किये हुए है। ब्राह्मणक्षत्रियविशां शूद्राणां च परंतप । कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैर्गुणैः ॥ ४१॥ ब्राह्मणाः च क्षत्रियाः च विशः च ब्राह्मण- हे परन्तप ! ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य इन क्षत्रियविशः तेषां ब्राह्मणक्षत्रियविशां शूद्राणां च तीनोंके और शूद्रोंके भी कर्म विभक्त किये हुए हैं ब्राह्मणादिके साथ शूद्रोंको मिलाकर--समास करके न वेदे अनधिकारात्, हे परंतप कर्माणि प्रविभक्तानि कहनेका अभिप्राय यह है कि शूद्र, द्विज न होनेके इतरेतरविभागेन व्यवस्थापितानि । कारण वेद-पठनमें उनका अधिकार नहीं है । केन, स्वभावप्रभवैः गुणैः स्वभाव ईश्वरस्य किसके द्वारा विभक्त किये गये हैं ? स्वभावसे उत्पन्न हुए गुणोंके द्वारा । स्वभाव यानी ईश्वरकी प्रकृतिः त्रिगुणात्मिका माया सा प्रभवो येषां प्रकृति—त्रिगुणात्मिका माया, वह माया जिन गुणानां ते स्वभावप्रभवाः तैः, शमादीनि गुणोंके प्रभवका यानी उत्पत्तिका कारण है, ऐसे खभावप्रभव गुणोंके द्वारा ब्राह्मणादिके, शम आदि कर्माणि प्रविभक्तानि ब्राह्मणादीनाम् । कर्म विभक्त किये गये हैं। अथवा ब्राह्मणस्वभावस्य सत्त्वगुणः प्रभवः अथवा यो समझो कि ब्राह्मणखभावका कारण कारणम्, तथा क्षत्रियस्वभावस्य सत्त्वोपसर्जनं सत्त्वगुण है, वैसे ही क्षत्रियस्वभावका कारण सत्त्व-मिश्रित रजोगुण है, वैश्यस्वभावका कारण रजः प्रभवः, वैश्यस्वभावस्य । तमउपसर्जनं तमोमिश्रित रजोगुण है और शूद्रस्वभावका कारण रजः प्रभवः, शूद्रस्वभावस्थ रजउपसर्जनं तमः रजोमिश्रित तमोगुण है । क्योंकि उपर्युक्त चारों प्रभवः प्रशान्त्यैश्वर्येहामूढतास्वभावदर्शनात् । वों में (गुणोंके अनुसार ) क्रमसे शान्ति, ऐश्वर्य, चेष्टा और मूढता ये अलग-अलग स्वभाव देखें चतुर्णाम् । जाते हैं। अथवा जन्मान्तरकृतसंस्कारः प्राणिनां अथवा यों समझो कि प्राणियोंके जन्मान्तरमें वर्तमानजन्मनि खकार्याभिमुखत्वेन । किये हुए कर्मोके संस्कार, जो वर्तमान जन्ममें अपने कार्यके अभिमुख होकर व्यक्त हुए हैं, उनका अभिव्यक्तः स्वभावः स प्रभवो येषां गुणानां नाम स्वभाव है । ऐसा खभाव जिन गुणोंकी ते स्वभावप्रभवा गुणाः। उत्पत्तिका कारण है, वे खभाव-प्रभव गुण हैं । गुणप्रादुर्भावस्य निष्कारणत्वानुपपत्तेः गुणोंका प्रादुर्भाव बिना कारणके नहीं बन स्वभावः कारणम् इति कारणविशेषोपादानम् । सकता । इसलिये 'स्वभाव उनकी उत्पत्तिका कारण है' यह कहकर कारणविशेषका प्रतिपादन किया गया है।