पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/४४१

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SAROOPANTHL.. Here- ऋ .... शांकरभाष्य अध्याय १८ किम् अशेषतः त्यक्तुम् अशक्यं कर्म इति(यहाँ यह विचार करना चाहिये कि) क्या कर्मोका न त्यजेत् किं वा सहजस्य कर्मणः त्यागे दोषो अशेपतः त्याग होना असम्भव हैं, इसलिये उनका त्याग नहीं करना चाहिये, अथवा सहज-कर्मका भवति इति । त्याग करनेमें दोष है इसलिये ? किं च अत: ? पूल-इससे क्या सिद्ध होगा? यदि तावद् अशेषतः त्यक्तम् अशक्यम् उ०-यदि यह बात हो कि अशेषतः त्याग होना इति न त्याज्यं सहजं कर्म एवं तर्हि : अशक्य है इसलिये सहज-कमोंका त्याग नहीं करना अशेषतः त्यागे. गुण एव स्याद् इति सिद्धं चाहिये, तब तो यही सिद्ध होगा कि कर्मोका भवति । अशेषतः त्याग करनेमें गुम ही है। सत्यम् एवम् अशेषतः त्याग एव न पू०-यह ठीक है, परन्तु यदि कर्म का पूर्णतया उपपद्यते इति चेत् । त्याग हो ही नहीं सकता ( तो फिर गुण-दोषकी बात ही क्या है ?) किं नित्यप्रचलितात्मकः पुरुषो यथा उ-तो क्या सांत्यवादियोंके गुणों की भौति सांख्यानां गुणाः किं वा क्रिया एव आत्मा सदा चलन-खभाववाला है ? अथवा बौद्ध- मतावलम्बियों के प्रतिक्षण, नष्ट होनेवाले ( रूप, कारकं यथा बौद्धानां पञ्च स्कन्धाः क्षण- वेदना, विज्ञान, संज्ञा और सरकाररूप) पञ्च- प्रध्वंसिनः, उभयथा अपि कर्मणः अशेषतः स्कन्धोंकी भाँति क्रिया ही कारक है ? इन दोनों ही त्यागो न भवति । प्रकारोंसे काँका अशेषतः त्याग नहीं हो सकता है अशेषतः त्यक्तुम् ।

अथ तृतीयः अपि पक्षो यदा करोति तदा हाँ, तीसरा एक पक्ष और भी है कि जब आत्मा सक्रियं वस्तु यदा न करोति तदा निष्क्रिय कर्म करता है, तब तो वह सक्रिय होता है और जब कर्म नहीं करता, तब वही निष्क्रिय होता है, वस्तु तद् एव । तत्र एवं सति शक्यं कर्म ऐसा मान लेनेसे कर्मोका अशेषतः त्याग भी हो सकता है। अयं तु असिन् तृतीये पक्षे विशेषो न इस तीसरे पक्षमें यह विशेषता है, कि न तो आत्मा नित्य चलन-स्वभाववाला माना गया है और नित्यप्रचलितं वस्तु न अपि क्रिया एव कारकं न क्रियाको ही कारक माना गया है, तो फिर किं तर्हि व्यवस्थिते द्रव्ये अविद्यमाना क्रिया क्या है, कि अपने रूपमें स्थित द्रव्यमें ही अविद्यमान किया उत्पन्न हो जाती है और विद्यमान उत्पद्यते विद्यमाना च विनश्यति । शुद्धं क्रियाका नाश हो जाता है ? शुद्ध द्रव्य, क्रियाकी शक्तिसे युक्त होकर स्थित रहता है. और वही द्रव्यं शक्तिमद् अवतिष्ठते इति एवम् आहुः कारक है । इस प्रकार वैशेषिकमतावलम्बी काणादा तद् एव च कारकम् इति । कहते हैं।