पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/४४४

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श्रीमद्भगवद्गीता न, बन्ध्यापुत्रादीनाम् अदर्शनात् । उ०-यह कहना ठीक नहीं, क्योंकि बन्ध्या- पुत्र आदिका किसीके साथ सम्बन्ध नहीं देखा जाता। घटादेः एवं प्रागभावस्य स्वकारणासंबन्धो अभावकी समानता होने पर भी यदि कहो कि घटादिके प्रागभावका ही अपने कारणके साथ सम्बन्ध भवति न वन्ध्यापुत्रादेः अभावस्य तुल्यत्वे होता है, बन्ध्यापुत्रादिके अभावका नहीं, तो इनके अपि इति विशेषः अभावस्य वक्तव्यः । अभावोंका भेद बतलाना चाहिये । एकस्य अभावो द्वयोः अभावः सर्वस्य एकका अभाव, दोका अभाव, सवका अभाव, अभाव प्रागभावः प्रध्वंसाभावः इतरे- । प्रागभाव, प्रध्वंसाभाव, अन्योन्याभाव, अत्यन्ताभाव तराभावः अत्यन्ताभाव इति लक्षणतो न इन लक्षणोंसे कोई भी अभावकी विशेषता नहीं केनचिद् विशेषो दर्शयितुं शक्यः । दिखला सकता। असति च विशेष घटस्य प्रागभाव एवं किर किसी प्रकारकी विशेषता न होते हुए भी यह कहना, कि घटका प्रागभाव ही कुम्हार आदिके कुलालादिभिः घटभावम् आपद्यते संबध्यते द्वारा घटभावको प्राप्त होता है, तथा उसका कपाल च भावेन कपालाख्येन स्वकारणेन सर्व- नामक अपने कारणरूप भावसे सम्बन्ध होता है, व्यवहारयोग्यः च भवति न तु घटस्य एवं और वह सब व्यवहारके योग्य भी होता है । परन्तु उसी घटका जो प्रध्वंसाभाव है, वह अभावत्वमें प्रध्वंसाभावः अभावत्वे सति अपि इति समान होने पर भी सम्बन्धित नहीं होता। इस तरह प्रध्वंसाधभावानां न क्वचिद् व्यवहारयोग्यत्वं प्रध्वंसादि अभावोंको किसी भी अवस्थामें व्यवहारके प्रागभावस्थ एव द्वयणुकादिद्रव्याख्यस्य योग्य न मानना और केवल द्वयणुक आदि द्रव्य नामक प्रागभावको ही उत्पत्ति आदि व्यवहारके उत्पश्यादिव्यवहारार्हत्वम् इति एतद् अस- योग्य मानना, असमञ्जसरूप ही है । क्योंकि मञ्जसम् अभावत्वाविशेषाद् अत्यन्तप्रध्वंसा- अत्यन्ताभाव और प्रध्वंसाभावके समान ही प्रागभाव- भावयोः इव । का भी अभावत्व है, उसमें कोई विशेषता नहीं है। ननु न एवं अस्माभिः प्रागभावस्य पू०-हमने प्रागभावका भावरूप होना नहीं भावापत्तिः उच्यते । बतलाया है। भावस्यः एव हि तर्हि भावापत्तिः यथा उ.-तब तो तुमने भावका ही भावरूप हो जाना घटस्य घटापत्तिः पटस्य वा पटापत्तिः। | कहा है, जैसे घटका घटरूप हो जाना, वस्त्रका एतद् अपि अभावस्य भावापत्तिवद् एव प्रमाण- वस्त्ररूप हो जाना; परन्तु यह भी अभावके भावरूप विरुद्धम् । होनेकी भाँति ही प्रमाण-विरुद्ध है। सांख्यस्य अपि यः परिणामपक्षः सः अपि सांख्य-मतावलम्बियोंका जो परिणामवाद है, उसमें अपूर्व धर्मकी उत्पत्ति और विनाश स्वीकार अपूर्वधर्मोत्पत्तिविनाशाङ्गीकरणाद् वैशेषिक- किया जानेके कारण, वह भी (इस विषयमें ) पक्षाद्न विशिष्यते । वैशेषिक-मतसे कुछ विशेषता नहीं रखता।