पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/४४७

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SHASWATION wiremiswanatamariyaRFANARRAriamisapani ANNAawrankr: -2Niko...... शांकरभाष्य अध्याय १८ उस पू!क्तन स्वकर्मानुपानेन इश्वराभ्यचन- पूक्ति वमोतुष्टानहाय ईश्चरार्चनरूप रूपेश जनितां प्रागुक्तलक्षणा सिद्धि प्रालय साधनसे उमगत हुई. इननिष्ठा-प्रतिनी योग्यता- सद सिद्रिक को प्राप्त कर चुका है और जिसमें उत्पन्नात्मविश्कज्ञानस्ल केवलात्मज्ञाननिहाया अमविषयक विवेकज्ञान उत्पन्न हो गया है, नैष्कम्येलक्षणा सिद्धिः येन क्रमेण भवति त कति मिलती है, वह (क्रम ) बतलाना है, पुरुषको जिस ऋनले केवल आत्म-ज्ञाननिष्टारूप वक्तव्यम् इति आह---- अतः कहते हैं- सिद्धि प्राप्तो यथा ब्रह्म तथानोति निबोध मे। समासनेच कौन्तेय निष्ठा ज्ञानस्य या परा॥ ५० ॥ सिद्धिं प्रातः स्वकर्मणा ईश्वरं समभ्यच्ये तत- सिद्धिको प्राप्त हुआ, अर्थात् अपने कर्मोद्वारा प्रसादजा कायेन्द्रियाणां ज्ञाननिष्ठायोग्यता- शरीर और इन्द्रियोंकी ज्ञाननिष्ठा-प्राप्तिकी योग्यता- ईश्वरी पूजा करके, उसकी कृपासे उत्पन्न हुई लक्षणां सिद्धि प्राप्तः सिद्धि प्राप्त इति तदनुवाद रूप सिद्धिको प्राप्त हुआ पुरुष---यह पुनरुक्ति आगे कहे जानेवाले वचनोंके साथ सम्बन्ध उत्तरार्थः । जोड़ने के लिये हैं। किं तद् उत्तरं यदर्थः अनुवाद इति वे आगे कहे जानेवाले वचन कौन-से हैं जिनके उच्यते। लिये पुनरुक्ति है ? सो बतलाते हैं--- यथा येन प्रकारेण ज्ञाननिष्ठारूपेण ब्रह्म जिस ज्ञाननिष्टारूप प्रकारसे (साधक) ब्रह्मको परमात्मानम् आप्नोति तथा तं प्रकारं ज्ञाननिष्ठा- -परमात्माको पाता है, उस प्रकारको, यानी प्राप्तिक्रम मे मम अचनाद् निबोध त्वं निश्चयेन ज्ञाननिष्टाम्राप्टिके क्रमको, तु मेरे बचनॊसे निश्चय- अवधारय इति एतत् । पूर्वक समझ । किं विस्तरेण, न इति आह समासेन एव क्या (उसका ) विस्तारपूर्वक ( वर्णन करेंगे ।) संक्षेपेण एव हे कौन्तेय । यथा ब्रह्म प्राप्नोति इसपर कहते हैं कि नहीं । हे कौन्तेय ! समाससे तथा निबोध इति अनेन या प्रतिज्ञाता ब्रह्म- अर्थात् संक्षेपसे ही, जिस क्रमसे ब्रह्मको प्राप्त होता है, प्राप्तिः ताम् इदंतया दर्शयितुम् आह निष्टा । उसे समझ । इस वाक्यसे जिस ब्रह्म-प्राप्तिके लिये प्रतिज्ञा की थी, उसे इदंरूपसे (स्पष्ट ) दिखानेके ज्ञानस्य या परा इति, निष्ठा पर्यवसान परि- लिये कहते हैं कि ज्ञानकी जो परानिष्टा है उसको समाप्तिः इति एतत् । कस्य, ब्रह्मज्ञानस्य या सुन । अन्तिम अवधि–परिसमासिका नाम निष्ठा है। परा परिसमाप्तिः। ऐसी जो ब्रह्मज्ञानकी परभावधि है (उसको सुन)। कोदशी सा, यादृशम् आत्मज्ञानम् । कीहक् वह (ब्रह्मानकी निष्ठा) कैसी है ? जैसा कि आत्मज्ञान है। वह कैसा है जैसा आत्मा है। वह तत् , यादृश आत्मा । कीदृशः असो, यादशो (आत्मा) कैसा है? जैसा भगवान्ने बतलाया है, तथा जैसा उपनिषद्वाक्योंद्वारा कहा गया है और जैसा भगवता उक्तः उपनिषद्वात्यैः च न्यायतः च । न्यायसे सिद्ध है।