पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/४४८

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श्रीमद्भगवद्गीता ननु विषयाकारं ज्ञानं न विषयो न अपि पू०-ज्ञान विषयाकार होता है, परन्तु आत्मा न तो कहीं भी विषय माना जाता है और न आकारवान् आत्मा इष्यते क्वचित् । आकारवान् ही! ननु 'आदित्यवर्णम्' 'भारूपः' 'स्वयंज्योतिः' उ०--किन्तु 'आदित्यवर्ण"प्रकाशस्वरूप स्वयं- ज्योति' इस तरह आत्माका आकारवान् होना तो इति आकारवत्वम् आत्मनः श्रूयते । श्रुतिमें कहा है। न, तमोरूपत्वप्रतिषेधार्थत्वात् तेषां वाक्या- पू०-यह कहना ठीक नहीं, क्योंकि वे वाक्य तमःखरूपत्वका निषेध करनेके लिये कहे गये हैं। नाम् । द्रव्यगुणाद्याकारप्रतिषेधे आत्मनः अर्थात् आत्मामें द्रव्यगुण आदिके आकारका तमोरूपत्वे प्राप्ते तत्प्रतिषेधार्थानि आदित्यवर्णम्' प्रतिषेध करनेपर जो आत्माके अन्धकाररूप माने इत्यादिवाक्यानि, 'अरूपम्' इति च विशेषतो जानेकी आशंका होती है, उसका प्रतिषेध करने- के लिये ही 'आदित्यवर्णम्' इत्यादि वाक्य हैं। रूपप्रतिषेधात् । अविषयत्वात् च 'न संदशे क्योंकि 'अरूपम्' आदि वाक्योंसे विशेषतः रूपका तिष्ठति रूपमस्य न चक्षुषा पश्यति कश्चनैनम् ।' प्रतिषेध किया गया है और इसका (आत्माका) रूप इन्द्रियोंके सामने नहीं ठहरता,इसको(आत्मा- (वे० उ० ४।२०) 'अशब्दमस्पर्शम्' (का०३० को) कोई भी आँखोंसे नहीं देख सकता' 'यह ३।१५) इत्याद्यैः। अशब्द है, अस्पर्श है' इत्यादि वचनोंसे भी आत्मा किसीका विषय नहीं है, यह बात कही गयी है। तस्माद् आत्माकारं ज्ञानम् इति अनुपपन्नम् । सुतरां 'जैसा आत्मा है वैसा ही ज्ञान है। यह कहना युक्तियुक्त नहीं है। कथं तर्हि आत्मनो ज्ञानम् । सर्व हि तब फिर आत्माका ज्ञान कैसे होता है ? क्योंकि यद्विषयं ज्ञानं तत्तदाकारं भवति निराकारः आकारवाले होते हैं और 'आत्मा निराकार है' सभी ज्ञान, जिसको विषय करते हैं उसीके च आत्मा इति उक्तम् । ज्ञानात्मनोः च ऐसा कहा है । फिर ज्ञान और आत्मा दोनों निराकार होनेसे उसमें भावना और निष्ठा कैसे उभयोः निराकारत्वे कथं तद्भावनानिष्ठा इति। हो सकती है ? अत्यन्तनिर्मलत्वस्वच्छत्वसूक्ष्मत्वो- उ०-यह कहना ठीक नहीं, क्योंकि आत्माका पपत्तेः आत्मनो बुद्धेः च आत्मसमनैर्मल्या- और बुद्धिका भी आत्माके सदृश निर्मलत्व आदि अत्यन्त निर्मलत्व, स्वच्छत्व और सूक्ष्मत्व सिद्ध है झुपपत्तेः आत्मचैतन्याकाराभासत्वोपपत्तिः। सिद्ध है, इसलिये उसका आत्मचैतन्यके आकारसे आभासित होना बन सकता है । बुद्धथाभासं मनः तदाभासानि इन्द्रियाणि बुद्धिसे आभासित मन, मनसे. आभासित इन्द्रियाभासः च देहः अतो लौकिकैः देहमात्रे इसलिये सांसारिक मनुष्य देहमात्रमें ही आत्मदृष्टि इन्द्रियाँ और इन्द्रियोंसे आभासित स्थूल शरीर है । एव आत्मदृष्टिः क्रियते। करते हैं।