पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/४६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

श्रीमद्भगवद्गीता अनुपपन्ना। नाम् । तथा च सति नित्यानां फलाश्रवणात् ऐसा होनेसे 'नित्यकर्मोंका फल नहीं बतलाया गया है और उनके अनुष्ठानका विधान किया गया है, उस तद्विधानान्यथानुपपत्तेः च नित्यानुष्ठानायास- विधानकी अन्य प्रकारसे उपपत्ति न होने के कारण, दुःखं पूर्वकृतदुरितफलम् इति अर्थापत्तिकल्पना नित्यकों के अनुष्ठानसे होनेवाला दुःख, पूर्वकृत पापोंका ही फल है, इस प्रकारकी जो अर्थापत्तिकी कल्पना की गयी थी, उसका खण्डन हो गया। एवं विधानान्यथानुपपत्तेः अनुष्ठानायास- इस तरह प्रकारान्तरसे नित्यकर्मोके विधानकी दुःखव्यतिरिक्तफलस्वानुमानात् च नित्या- अनुपपत्ति होनेसे और नित्यकर्मोंका अनुष्ठानसम्बन्धी परिश्रमरूप दुःखके सिवा दूसरा फल होता है, ऐसा अनुमान होनेसे भी (यह पक्ष खण्डित हो जाता है)। विरोधात् च । विरुद्धं च इदम् उच्यते नित्य- इसके सिवा ऐसा माननेमें विरोध होने के कारण कर्मणि अनुष्ठीयमाने अन्यस्य कर्मणः । भी ( यह पक्ष कट जाता है)। नित्यकर्मोका अनुष्ठान करते हुए दूसरे कर्मों का फल भोगा जाता है, ऐसा फलं भुज्यते इति अभ्युपगम्यमाने स एवं मान लेनेसे यह कहना होता है कि यह उपभोग ही उपभोगो नित्यस्य कर्मणः फलम् इति नित्यस्य नित्यकर्मका फल है । और साथ ही यह भी प्रति- कर्मणः फलाभाव इति च विरुद्धम् उच्यते । पादन करते जाते हो, कि नित्यकर्मका फल नहीं है; अतः यह कथन परस्पर विरुद्ध होता है। किं च काम्याग्निहोत्रादौ अनुष्ठीयमाने नित्यम् इसके अतिरिक्त, (तुम्हारे मतानुसार ) काम्य अपि अग्निहोत्रादि तन्त्रेण एव अनुष्ठितं भवति अग्निहोत्रादिका अनुष्ठान करते हुए तन्त्रसे नित्य- अग्निहोत्रादि भी उन्हींके साथ अनुष्ठित हो जाते इति तदायासदुःखेन एव काम्याग्निहोत्रादि- : हैं । अतः उस परिश्रमरूप दुःखभोगसे ही काम्य- फलम् उपक्षीणं स्यात् तत्तन्त्रत्वात् । अग्निहोत्रादिका भी फल क्षीण हो जायगा, क्योंकि वह उसके अधीन है। अथ काम्याग्निहोत्रादिफलम् अन्यद् एव यदि ऐसा माने कि काम्य अग्निहोत्रादिका स्वर्गादि- स्वर्गादि तदनुष्ठानायासदुःखम् अपि भिन्न प्राप्तिरूप दूसरा ही फल होता है तो उनके अनुष्ठान में होनेवाले परिश्रमरूप दुःखको भी नित्यकर्म- प्रसज्येत । न च तद् अस्ति दृष्टविरोधात्। न हि के परिश्रमसे भिन्न मानना आवश्यक होगा । परन्तु काम्यानुष्ठानायासदुःखात् केवलनित्यानुष्टाना- प्रत्यक्ष प्रमाणसे विरुद्ध होनेके कारण यह नहीं हो सकता। क्योंकि काम्यकोंके अनुष्टानसे होनेवाले यासदुःखं भिद्यते । परिश्रमरूप दुःखसे, केवल नित्यकर्म-अनुष्ठानमें होनेवाले परिश्रमरूप दुःखका, भेद नहीं है। किं च अन्यद् अविहितम् अप्रतिषिद्धं च कर्म इसके सिवा दूसरी बात यह भी है कि जो कर्म न विहित हो और न प्रतिषिद्ध हो, वही तत्काल तत्कालफलं न तु शास्त्रचोदितं प्रतिषिद्धं वा फल देनेवाला होता है, शास्त्रविहित या प्रतिषिद्ध | कर्म तत्काल फल देनेवाला नहीं होता । यदि ऐसा