पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/४७०

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श्रीमद्भगवद्गीता 'ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति 'उनको मैं वह बुद्धियोग देता हूँ जिससे वे मुझे प्राप्त हो जाते हैं। इससे यह सिद्ध होता है ते । अर्थाद् न कर्मिणः अज्ञा उपयान्ति । कि कर्म करनेवाले अज्ञानी भगवान्को प्राप्त नहीं होते। भगवत्कर्मकारिणो ये युक्ततमा अपि भगवदर्थ कर्म करनेवाले जो युक्ततम होनेपर भी कर्मी होनेके नाते अज्ञानी हैं, वे चित्त- कर्मिणः अज्ञाः ते उत्तरोत्तरहीनफलत्यागा- समाधानसे लेकर कर्मफलत्यागपर्यन्त उत्तरोत्तर वसानसाधनाः। हीन बतलाये हुए साधनोंसे युक्त होते हैं। अनिर्देश्याक्षरोपासकाः तु 'अद्वेष्टा सर्व- तथा जो अनिर्देश्य अक्षरके उपासक हैं वे 'अद्वेष्टा भूतानाम्' इत्यादि आ-अध्यायपरिसमाप्ति उक्त- सर्वभूतानाम्' आदिसे लेकर, बारहवें अध्यायकी समाप्तिपर्यन्त बतलाये हुए साधनोंसे सम्पन्न और साधनाः क्षेत्राध्यायाधध्यायत्रयोक्तज्ञान- | तेरहवें अध्यायसे लेकर तीन अध्यायोंमें बतलाये साधनाचा हुए ज्ञान-साधनोंसे भी युक्त होते हैं । अधिष्ठानादिपञ्चहेतुकसर्वकर्मसंन्यासिनाम् अधिष्ठानादि पाँच जिनके कारण हैं, ऐसे समस्त आत्मैकत्वाकर्तृत्वज्ञानवतां परस्यां ज्ञाननिष्ठायां कोका जो संन्यास करनेवाले हैं, जो आत्माके वर्तमानानां भगवत्तत्वविदाम् अनिष्टादिकर्म- परानिष्ठामें स्थित हो गये हैं, जो भगवत्स्वरूप और एकत्व और अकर्तृत्वको जाननेवाले हैं, जो ज्ञानकी फलत्रयं परमहंसपरिवाजकानाम् एव लब्धभग- | आत्माके एकत्वज्ञानकी शरण हो चुके हैं, ऐसे वत्स्वरूपात्मैकत्वशरणानां न भवति । भवति भगवान्के तत्त्वको जाननेवाले परमहंस परिव्राजकों- को, इष्ट-अनिष्ट और मिश्र----ऐसा त्रिविध कर्मफल एव अन्येषाम् अज्ञानां कर्मिणाम् असंन्यासिनाम् नहीं मिलता । इनसे अन्य जो संन्यास न करने- इति एष गीताशास्त्रोक्तस्य कर्तव्याकर्तव्यार्थस्य वाले कर्मपरायण अज्ञानी हैं, उनको कर्मका फल अवश्य भोगना पड़ता है, यही गीताशास्त्र में कहे विभागः। हुए कर्तव्य और अकर्तव्यका विभाग है। अविद्यापूर्वकत्वं सर्वस कर्मणः असिद्धम् पू०-सभी कर्मोंको अविद्यामूलक मानना युक्ति- इति चेत् । सङ्गत नहीं है। न, ब्रह्महत्यादिवत् । यद्यपि शास्त्रावगतं उ०-नहीं, ब्रह्महत्यादि निषिद्ध कर्मोंकी भाँति (सभी कर्म अविद्यामूलक हैं ) नित्यकर्म यद्यपि नित्यं कर्म तथापि अविद्यावत एव भवति । शास्त्रप्रतिपादित हैं तो भी वे अविद्यायुक्त पुरुषके ही कर्म हैं। यथा प्रतिषेधशास्त्रावगतम् अपि ब्रह्महत्यादि- जैसे प्रतिषेध-शास्त्रसे कहे हुए भी अनर्थके कारणरूप ब्रह्महत्यादि निषिद्धकर्म अविद्या और लक्षणं कर्म अनर्थकारणम् अविद्याकामादिदोष- ! कामनादि दोषोंसे युक्त पुरुषके द्वारा ही हो सकते हैं,