पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/४७१

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"....--- ............. शांकरभाप्य अध्याय १८ वतो भवति अन्यथा प्रवृत्त्यनुपपत्तेः तथा क्योंकि दूसरी तन्ह उनमें प्रवृत्ति नहीं हो सकती। नित्यनैमित्तिककाम्यानि अपि इति । उसी प्रकार नित्य-नैमित्तिक, और काम्य आदि कर्म भी, अविद्या और कामनासे युक्त मनुष्यसे व्यतिरिक्तात्मनि अज्ञाते प्रवृत्तिः नित्या- पूछ-परन्तु आत्माको शरीरले गृथक् समझे विना नित्य-नैमित्तिक आदि कने प्रवृत्तिका दिकर्मसु अनुपपन्ना इति चेत् । होना अलम्भन है। न, चलनात्मकस्य कर्मणः अनात्मकई- उ०-यह कहना ठीक नहीं, क्योंकि आत्मा कस्य अहं करोमि इति प्रवृत्तिदर्शनात् । जिसका कर्ता नहीं है ऐले चलनरूप कर्ममें (अज्ञानियों- की) 'मैं करता हूँ ऐसी प्रवृत्ति देखी जाती है। देहादिसंघाते अहंप्रत्ययो गौणो न मिथ्या यदि कहो कि शरीर आदिमें जो अहंभाव है वह गोश है, मिथ्या नहीं है। तो ऐसा कहना इति चेत् । न, तत्कार्येषु अपि गौणत्वोपपत्तेः। ठीक नहीं, क्योंकि ऐसा माननसे उनके कार्यमें भी गोगता सिद्ध होगी। आत्मीये देहादिसंघाते अहंप्रत्ययो गौणो पूल-जैसे 'हे पुत्र! तू मेरा आत्मा ही है इस यथा आत्मीये पुत्रे 'आत्मा वै पुत्र नामासि श्रुतिवाक्यके अनुसार, अपने पुत्रमें 'अहंभाव होता तथा संसारमें भी जैसे “यह गौ मेस प्राण ही (तै० सं० २।११) इति, लोके च अपि मम है' इस प्रकार प्रिय बस्तुमें 'अहंभाव' होता देखा प्राण एव अयं गौः इति तद्वद् न एव अयं जाता है, उसी प्रकार अपने शरीरादि संघातमें भी मिथ्याप्रत्ययः, मिथ्याप्रत्यया तु स्थाणुपुरुषयोः अहंभाव गौण ही है । यह प्रतीति मिथ्या नहीं है। मिथ्या प्रतीति तो यह है कि जो स्थाणु और पुरुषके अगृह्यमाणविशेषयोः। भेदको न जानकर स्थाणुमें पुरुषकी प्रतीति होती है । न गौणप्रत्ययस्य मुख्यकार्यार्थत्वम् अधि- उ०-( यह कहना ठीक नहीं. क्योंकि ) गौण प्रयोग लुप्तोपमा शब्दद्वारा अधिकरणकी स्तुति करणस्तुत्यर्थत्वाद् लुप्तोपमाशब्देन । करनेके लिये होता है, इसलिये गौण प्रतीतिसे मुख्यके कार्यकी सिद्धि नहीं होती। यथा सिंहो देवदत्तः अग्निः माणवक इति जैसे कोई कहे कि देवदत्त सिंह है, या बालक अग्नि है, तो उसका यह कहना, 'देवदत्त सिंहके सिंह इव अग्निः इव क्रौर्यपैङ्गल्यादिसामान्य- सदृश क्रूर और बालक अग्निके समान पिङ्गल (गौर) वर्ण, इस प्रकारकी समानताके कारण देवदत्त और वत्त्वाद् देवदत्तमाणवकाधिकरणस्तुत्यर्थम् एव, बालकरूप अधिष्ठानकी स्तुति के लिये ही है। क्योंकि गौण शब्द या गौण ज्ञानसे कोई सिंहका न तु सिंहकार्यम् अग्निकार्यवा गौणशब्दप्रत्यय- कार्य (किसीको भक्षण कर जाना ) या अग्निका कार्य (किसीको जला डालना)