पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/५२

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श्रीमद्भगवद्गीता देहे संन्यस्य इति संबन्धो न देहे आस्ते पू०-उक्त वाक्यमें 'शरीरमें कर्मोंको रखकर' इस इति चेत् । तरह सम्बन्ध है 'शरीरमें रहता है' इस प्रकार सम्बन्ध नहीं है, ऐसा मानें तो ? न, सर्वत्र आत्मनः अविक्रियत्वावधारणात् । उ०-ठीक नहीं। क्योंकि सभी जगह आत्माको आसनक्रियायाः च अधिकरणापेक्षत्वात | निर्विकार माना गया है । तथा 'आसन' क्रियाको तदनपेक्षत्वात् च संन्यासस्य, संपूर्वः तु न्यास- अपेक्षा नहीं है । एवं 'स' पूर्वक 'न्यास' शब्दका आधारकी अपेक्षा है और 'संन्यास' उसकी शब्द: इह त्यागार्थो न निक्षेपार्थः । अर्थ यहाँ त्यागना है, निक्षेप (रख देना) नहीं । तस्मात् गीताशास्त्रे आत्मज्ञानवतः संन्यासे सुतरां गीता-शास्त्रमें, आत्मज्ञानीका संन्यासमें एव अधिकारो न कर्मणि इति तत्र तत्र चलकर आत्मज्ञानके प्रकरणमें हम जगह-जगह ही अधिकार है, कोंमें नहीं । यही बात आगे उपरिष्टात् आत्मज्ञानप्रकरणे दर्शयिष्यामः।२१३ दिखलायेंगे ॥२१॥ प्रकृतं तु वक्ष्यामः, तत्र आत्मनः अविनाशि- अब हम प्रकृत विषय वर्णन करेंगे। यहाँ (प्रकरणमें ) आत्माके अविनाशित्वकी प्रतिज्ञा की त्वं प्रतिज्ञातं तत् किम् इव इति उच्यते- गयी है वह किसके सदृश है? सो कहा जाता है- वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि । तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥ २२ ॥ वासांसि वस्त्राणि जीर्णानि दुर्बलतां गतानि जैसे जगत्में मनुष्य पुराने-जीर्ण वस्त्रोंको त्याग- यथा लोके विहाय परित्यज्य नवानि अभिनवानि | कर अन्य नवीन वस्त्रोंको ग्रहण करते हैं, वैसे ही गृह्णाति उपादत्ते नरः पुरुषः अपराणि अन्यानि जीवात्मा पुराने शरीरोंको छोड़कर अन्यान्य नवीन तथा तद्वत् एव शरीराणि विहाय जीर्णानि अन्यानि | शरीरों को प्राप्त करता है । अभिप्राय यह कि (पुराने संयाति संगच्छति नवानि देही आत्मा पुरुषवत् वस्त्रोंको छोड़कर नये धारण करनेवाले ) पुरुषकी अविक्रिय एव इत्यर्थः ॥२२॥ भाँति जीवात्मा सदा निर्विकार ही रहता है ॥२२॥ कसात् अविक्रिय एव इति । आह- आत्मा सदा निर्विकार किस कारणसे है ? सो कहते हैं- नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः । न चैनं लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥२३॥ एनं प्रकृतं देहिनं न छिन्दन्तिः शस्त्राणि इस उपर्युक्त आत्माको शस्त्र नहीं काटते, निरवयवत्वात् न अवयवविभागं कुर्वन्ति अभिप्राय यह कि अवयवरहित होनेके कारण | तलवार आदि शस्त्र इसके अंगोंके टुकड़े नहीं शस्त्राणि अस्यादीनि । कर सकते।