पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/६२

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श्रीमद्भगवद्गीता के, अविपश्चितः अल्पमेधसः अविवेकिन कौन कहा करते हैं ? अज्ञानी अर्थात् अल्प-बुद्धि- इत्यर्थः । वेदवादरता बह्वर्थवादफलसाधन- | वाले अविवेकी, जो कि बहुत अर्थवाद और फल- प्रकाशकेषु वेदवाक्येषु रताः। साधनोंको प्रकाश करनेवाले वेदवाक्योंमें रत हैं। हे पार्थ न अन्यत्. स्वर्गप्राप्त्यादिफल- तथा हे पार्थ ! जो ऐसे भी कहनेवाले हैं कि साधनेभ्यः कर्मभ्यः अस्ति इति एवं वादिनो स्वर्ग-प्राप्ति आदि फलके साधनरूप कर्मोंसे अतिरिक्त वदनशीलाः ॥४२॥ अन्य कुछ है ही नहीं ॥४२॥ तथा वे- कामात्मानः खर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम् । क्रियाविशेषबहुला भोगैश्वर्यगति प्रति ॥४३॥ कामात्मानः कामखभावाः कामपरा इत्यर्थः।। कामात्मा-जिन्होंने कामको ही अपना खभाव बना वर्गपराः स्वर्गः परः पुरुषार्थो येषां ते वर्गपराः लिया है ऐसे कामपरायण और स्वर्गको प्रधान मानने- वाले यानी स्वर्ग ही जिनका परम पुरुषार्थ है ऐसे पुरुष वर्गप्रधाना जन्मकर्मफलप्रदां कर्मणः फलं कर्म- जन्मरूप कर्म-फलको देनेवाली ही बातें किया करते फलं जन्म एव कर्मफलं जन्मकर्मफलं तत् हैं। कर्मके फलका नाम 'कर्म-फल' है, जन्मरूप कर्म- प्रददाति इति जन्मकर्मफलप्रदा. तां वाचं फल 'जन्म-कर्म-फल' कहलाता है, उसको देनेवाली वाणी 'जन्म-कर्म-फल-प्रदा' कही जाती है। ऐसी प्रवदन्ति इति अनुपज्यते। वाणी कहा करते हैं। क्रियाविशेषबहुलां क्रियाणां विशेषाः क्रिया- इस प्रकार भोग और ऐश्वर्यकी प्राप्ति के लिये जो विशेषाः ते बहुला यस्यां वाचि तां स्वर्गपशु- क्रियाओंके भेद हैं वे जिस वाणीमें बहुत हों अर्थात् पुत्राद्यर्था यया बाचा बाहुल्येन प्रकाश्यन्ते । स्वर्ग, पशु, पुत्र आदि अनेक पदार्थ जिस वाणीद्वारा भौगैश्वर्यगति प्रति भोगः च ऐश्वयं च भोगैश्वर्ये अधिकताले बतलाये जाते हों, ऐसी बहुत-से क्रिया- तयोः गतिः प्राप्तिः भोगैश्वर्यगतिः तां प्रति साधनभूता ये क्रियाविशेषाः तबहुला तो भेदोंको बतलानेवाली वाणीको बोलनेवाले वे मूढ़ बाचं प्रवदन्तो मूढाः संसारे परिवर्तन्ते बारंबार संसार-चक्रमें भ्रमण करते हैं, यह इति अभिप्रायः॥४३॥ अभिप्राय है ॥४३॥ भोगैश्चर्यप्रसक्तानां तयापहतचेतसाम् । व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते ॥ ४४ ॥ तेषां च भोगैश्वर्यप्रसक्तानां भोगः कर्तव्यम् जो भोग और ऐश्वर्यमें आसक्त हैं, अर्थात् भोग और | ऐश्वर्य ही पुरुषार्थ है ऐसे मानकर उनमें ही जिनका प्रेम ऐश्वर्य च इति भोगैश्वर्ययोः एव प्रणयवतां हो गया है इस प्रकार जो तद्रूप हो रहे हैं, तथा क्रिया- तदात्मभूतानां तया क्रियाविशेषबहुलया वाचा भेदोंको विस्तारपूर्वक बतलानेवाली उस उपर्युक्त बाणी- द्वारा जिनका चित्त हर लिया गया है अर्थात् अपहृतचेतसाम् आच्छादितविवेकप्रज्ञानां (जिनकी ) विवेक-बुद्धि आच्छादित हो रही है। उनकी समाधिमें सांख्यविषयक या व्यवसायात्मिका सांख्ये योगे वा बुद्धिः समाधौ । योगविषयक निश्चयात्मिका बुद्धि ( नहीं ठहरती)।