पृष्ठ:संकलन.djvu/११२

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उड़ते हुए व्योमयान के भीतर का दृश्य चलते हुए जहाज़ के कमरे के दृश्य से भिन्न नहीं। साज़-सामान सब वैसा ही स्वच्छ, शुद्ध और सुखदायक मालूम होता है। जहाज़ से जहाँ तक दृष्टि पहुँचती है, जल ही जल नज़र आता है। व्योमयान से भी नीचे पृथ्वी, समुद्र के सदृश, जान पड़ती है। मैदानों में उड़ते समय व्योमयान बिलकुल हिलता-डुलता नहीं मालूम पड़ता। पहाड़ों के निकट, अथवा उन्हें पार करते समय, अवश्य उसमें थरथराहट उत्पन्न हो जाती है। झीलों और अन्य बड़े बड़े जलाशयों का दृश्य बड़ा ही मनोहर होता है। ऐसे अवसर पर तूफ़ान चलने और उससे व्योमयान के पथ में अन्तर पड़ जाने का भय रहता है। इसलिए समुद्र अथवा झील पार करते समय व्योमयान के कर्मचारी खूब चौकन्ने रहते हैं। पहाड़ और समुद्र आदि के ऊपर गुज़रते समय व्योमयान की गति मन्द कर दी जाती है। खुले मैदान में पहुँचते ही फिर उसकी गति बढ़ा दी जाती है।

यात्रियों के लिए भोजन का प्रबन्ध तो रहता ही है। भोजन का समय होते ही बावर्ची सब यात्रियों के सामने छोटी छोटी मेज़ें बिछा देता है। उन पर सफ़ेद कपड़ा बिछा रहता है और चाँदी के पात्र रक्खे रहते हैं। बावर्ची उनपर भोजन रख देता है। आपस में वात-चीत करते हुए यात्री भोजन करते हैं। भोजन समाप्त होने के बाद बावर्ची सब चीज़ों को हटा कर उचित स्थानों पर रख देता है। लोग मनोरञ्जन का भी सामान

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