पृष्ठ:संकलन.djvu/१२५

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तुर्कों का कब्ज़ा रह जाय,तो चाहे भले ही रह जाय । पर वह भी औरों के लाभ के लिए,तुर्कों के नहीं।

एक समय था जब तुर्कों के नाम से योरप के बड़े बड़े साम्राज्य भयभीत रहते थे। मिस्र की उर्वरा भूमि और एशिया मायनर के धनवान देशों से लेकर ट्रिपली, अरब और अलजि- यर्स की मरुभूमि तक के अधिपति उन के चरणों पर सौगातें रखने में अपना परम सौभाग्य समझते थे। आज उन्हीं तुर्की का, जिनका संसार में इतना ऊँचा स्थान था और जिन का शताब्दियों तक बोल-बाला रहा, बड़ा ही बुरा हाल है। वे ठोकर पर ठोकर खाते हैं। लोग उन्हें पीछे से धक्के पर धक्के लगाते हैं। उनके अस्तित्व तक को मिटा देने का प्रयत्न हो रहा है।


सैकड़ों वर्षों से टर्की का सम्बन्ध योरप की महाशक्तियों से है । इन शक्तियों की काया-पलट हो गई। पर टर्की चुपचाप इस परिवर्तन को देखता रहा। अपने पड़ोसियों को उन्नत होते देख कर भी उसने सबक न सीखा। यदि वह अब भी न सीखेगा तो एशिया में भी उस की खैर नहीं । जिस की भुजा में बल है, वही सुख से संसार में रह सकता है। उसी से सब कोई डरता है। उसी के हक नहीं मारे जाते । उसी का सब कहीं आदर होता है । निर्बल का कहीं भी गुज़ारा नहीं।

[दिसम्बर १९१२

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