पृष्ठ:संकलन.djvu/१२९

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रुपया उसी का नहीं। अपने ख़जाने से तो वह केवल ४ करोड़ ५ लाख देती है। बाकी रुपया जो ख़र्च होता है, वह उदार भारतवासियों के चन्दे आदि से मिलता है। इस दशा में गवर्नमेंट के ख़र्च की मात्रा घट कर फ़ी आदमी दो ही आने रह जाती है। यूरोप और अमेरिका के भिन्न भिन्न देशों में सर्व-साधारण की शिक्षा के लिए जितना रुपया ख़र्च किया जाता है, उसके मुकाबिले में सरकार का यह ख़र्च दाल में नमक के भी बराबर नहीं। जिनके ऊपर गवर्नमेंट सत्ता चलाती है, उनकी सुशिक्षा का समुचित प्रबन्ध करना उसका सबसे बड़ा कर्तव्य है।

(३)
मुसलमानों में शिक्षा

इस देश में जितने आदमी रहते हैं, उनमें फ़ी सदी केवल १.९ लड़के, १९०२ में, स्कूल जाते थे। अर्थात् सैकड़े पीछे २ लड़के भी शिक्षा न पाते थे। उस साल सारे भारत में लिखे-पढ़ों की संख्या फी सदी केवल ५.३ थी। १९११ में स्कूल जानेवाले लड़को का औसत फी सदी २.७ हो गया और लिखे-पढ़ों की संख्या फी सदी कुछ कम ६ हो गई। इसका मतलब यह हुआ कि १९११ में फी सदी ९४ आदमी निरक्षर भट्टाचार्य थे और सैकड़े पीछे सिर्फ 2¾ आदमी (लड़के) मदरसों में शिक्षा-प्राप्ति के लिए जाते थे। शार्प साहब की रिपोर्ट का पहला ही भाग, अब तक, हम देख पाये हैं। उसमें हिन्दुओं की निरक्षरता और पण्डिताई (!) का अलग हिसाब नहीं दिया गया। अतएव नहीं

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