पृष्ठ:संकलन.djvu/१५२

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पर यह क़ानून जारी हुआ कि जो नाम दर्ज कराने के लिए ४५ रुपये न दे, उसे १५० से १५०० रुपये तक जुर्माना और १४ दिन से ६ महीने तक की सजा भुगतनी पड़े। पहले लैसन्स लेकर ट्रांसवाल भर में एशियावासी व्यापार कर सकते थे। अब वही लोग ऐसा कर सकते थे जिनके पास लड़ाई के पहले के लैसन्स थे। नये व्यापारियों को शहर के बाहर एक ख़ास जगह पर ही व्यापार करने या दूकान खोलने के लिए लैसन्स मिलने लगे। हिन्दुस्तानियों को शहर के बाहर एक नियत जगह पर रहने का तो हुक्म था ही, अब यह भी हुक्म हुआ कि वे कोई जायदाद न ख़रीदें और बिना आज्ञा के एक स्थान से दूसरे स्थान को न जायँ। उनके नाम-धाम की ख़बर रखने के लिए हर शहर में पुलिस एक रजिस्टर रखने लगी।

इसके बाद हिन्दुस्तानियों पर एक और भी विपत्ति आई। लार्ड मिलनर ने आज्ञा दी कि हिन्दुस्तानियों को फिर से अपना नाम रजिष्टर कराना आवश्यक होगा। पर उन्होंने विश्वास दिलाया कि एक बार हो जाने पर फिर कभी रजिष्टरी न होगी। जिसको रजिष्टरी का प्रमाणपत्र मिल जायगा, वह चाहे जहाँ ट्रांसवाल भर में व्यापार कर सकेगा।

१८८५ ईसवी-वाला पहला क़ानून भारतवासियों को सता ही रहा था; इस दूसरे क़ानून ने भी उनकी शान्ति में बड़ी बाधा पहुँचाई। उन्होंने इसी कारण वहाँ की सबसे बड़ी अदालत में इस आज्ञा के विरुद्ध मुक़द्दमा दायर कर दिया।

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