पृष्ठ:संकलन.djvu/१५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

जजों ने मुकद्दमे का फैसिला यह किया कि हिन्दुस्तानी चाहे जहाँ व्यापार कर सकते हैं। उन्हें शहर के बाहर किसी नियत स्थान में न रहने के कारण क़ानूनन् कोई सज़ा नहीं दी जा सकती।

यह फ़ैसला हिन्दुस्तानियों के विरोधियों को बहुत ही बुरा लगा। उन्होंने इस फ़ैसले को रद कराने की खूब चेष्टा की। पर, उपनिवेशों के सेक्रेटरी, लार्ड लिटलटन, के ज़ोर देने पर उनका वह प्रयत्न उस समय व्यर्थं गया।

इसके बाद ट्रांसवाल-वालों ने यह शोर मचाया कि झुण्ड के झुण्ड हिन्दुस्तानी ट्रांसवाल में घुसे चले आते हैं। धीरे- धीरे उनका यह स्वर और भी ऊँचा हो चला। इतने ही में जोन्सबर्ग नामक नगर के हिन्दुस्तानियों के निवास-स्थान में प्लेग फूट पड़ा। इस कारण वहाँ के हिन्दुस्तानी सारे ट्रांस- वाल में फैल गये। ट्रांसवाल-वालों को यह अच्छा मौक़ा मिला। इस पर उन्होंने यह निश्चय कर लिया कि नये भारत- वासियों को वहाँ न घुसने देना चाहिए। जो हैं, उन्हें शहर के बाहर रखना चाहिए और वहीं उन्हें वनिज-व्यापार की अनु- मति होनी चाहिए।

हिन्दुस्तानियों ने यह देख कर, एक कमीशन के द्वारा अपने दुःखों की जाँच की जाने की प्रार्थना सरकार से की। पर वह न सुनी गई। अन्त में १९०६ ईसवी में एक क़ानून बना। उसके अनु-

१५०