पृष्ठ:संकलन.djvu/१७७

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कुछ वर्ष हुए, पेरिस में एक प्रदर्शिनी हुई थी। उसमें इलाहाबाद के नामी वकील पण्डित मोतीलाल नेहरू गुलाम नामक पहलवान को अपने साथ ले गये थे। वहाँ विख्यात तुर्की पहलवान मादरअली के साथ गुलाम की कुश्ती हुई। गुलाम ने बात की बात में अपने प्रतिपक्षी को ज़मीन दिखा दी। योरपवालों की दृष्टि में गुलाम से बढ़कर और कोई पहलवान संसार में न दिखाई दिया।

१९०९-१० में बेंजामिन साहब तीन पहलवान भारत से विलायत ले गये -- गामा, गामू और इमामबख्श। अमेरिका के नामी पहलवान डाक्तर रोलर के साथ गामा की और स्विट्ज़रलैंड के प्रसिद्ध पहलवान लेम (Lemm) के साथ इमामबख्श की कुश्ती ठहरी। दो लाख रुपया जमा करके इक़रारनामे लिखे गये। रोलर और लेम को विलायतवाले अजेय समझते थे। २० मिनट में गामा ने रोलर को और १२ मिनट में इमामबख्श़ ने लेम को चित्त कर दिया। यह देखकर, सारे योरप ने दाँतों तले उँगली दबाई। गुलाम का नाम पञ्जाब-केसरी (The Lion of the Punjab) और इमामबख्श का पुरुष-व्याघ्र ( The Panther ) रक्खा गया। इस विजय के उपलक्ष्य में गुलाम को १५ हज़ार रुपया नक़द, और दर्शकों का टिकट बेचने से जो रुपया जमा हुआ था, उसमें से भी ७० फ़ी सदी उसे मिला। इमाम बख्श़ ने ७ हज़ार पाया। टिकट की बिक्री से प्राप्त रुपये में से ७० फ़ी सदी उसने भी पाया।

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