१९०४ की कांग्रेस बम्बई में है। इसलिए उस प्रांत के दो एक प्रसिद्ध कांग्रेसवालों का परिचय भी, लगे हाथ, हम करा देना चाहते हैं। उनमें से प्रथम स्थान दादाभाई नौरोजी का है। वे इस कांग्रेस में न आ सकेंगे। पर वे उसके पूरे पक्षपाती हैं।
दादाभाई का जन्म, बम्बई में, १८२५ ईसवी में हुआ था।
उनके पिता एक पारसी-पुरोहित थे। वहीं, बम्बई में, उनकी
अँगरेजी शिक्षा समाप्त हुई। अनंतर वे एल्फिंस्टन कालेज में
अध्यापक नियत हुए। अपने काम से उन्होंने कालेज के
अधिकारियों को खूब खुश किया। कुछ समय तक वे विद्या-
संबंधिनी एक गुजराती सभा के सभापति रहे। फिर उन्होंने
रास्त-गुफ्तार नामक एक गुजराती अखबार निकाला। दो
वर्ष तक वे उसके संपादक रहे; फिर छोड़ दिया। यह अखबार
अब तक जारी है। १८५५ ईसवी में वे इंग्लैंड गये और वहाँ
व्यापार करने लगे। तब से वे वहीं रहते हैं। यहाँ भी कभी
कभी आ जाते हैं। १८७४ में, कुछ काल तक वे बरौदा में गायक-
वाड़ के दीवान थे। वे "हौस आफ कामन्स" अर्थात् पार्लिया-
मेंट के एक बार सभासद रह चुके हैं। अब फिर उसमें प्रवेश
पाने का वे यत्न कर रहे हैं। वे पहले हिंदुस्तानी हैं जिनको
पार्लियामेंट में बैठने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। एक बार, बंबई
में, गवर्नर की कौंसिल में भी वे बैठ चुके हैं। यद्यपि वे बहुत
बूढ़े हैं, तथापि देश-हित करने की प्रबल प्रेरणा से पुस्तकें लिख
कर, बड़े बड़े अधिकारी अँगरेज़ों से मिल कर, और समय समय
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