पृष्ठ:संकलन.djvu/३२

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करना किसी को अच्छा नहीं लगता। इस प्रकार क्रोध करना और उचित-अनुचित बोलना असभ्यता का लक्षण है। क्रोध ही के कारण स्त्री-पुरुष में बिगाड़ हो जाता है। क्रोध ही के कारण मित्रों का साथ, सभा-समाज का जाना, और जान- पहचानवालों के साथ उठना-बैठना असह्य हो जाता है। क्रोध ही के कारण सीधी-सादी हँसी की बातों से भयानक और शोककारक घटनायें पैदा हो जाती हैं। क्रोध ही के कारण मित्र द्रोह करने लगते हैं। क्रोध ही के कारण मनुष्य अपने आप को भूल जाता है; उसकी विचार-शक्ति जाती रहती है; और बात-चीत करने में वह कुछ का कुछ कहने लगता है। क्रोध ही के कारण मनुष्य, किसी वस्तु का चुपचाप ज्ञान प्राप्त न करके, व्यर्थ झगड़ा करने लगता है। जिनको ईश्वर ने प्रभुता दी है, उनको क्रोध घमंडी बना देता है। क्रोध सारासार विचार पर परदा डाल देता है; उपदेश और शिक्षा को क्लेश- दायक कर देता है; श्रीमान् को द्वेष का पात्र कर देता है। जो लोग भाग्यवान् नहीं, वे यदि क्रोधी हुए तो उन पर कोई दया नहीं करता। क्रोधी अनेक बुरे विकारों की खिचड़ी है। उसमें दुःख भी है, द्वेष भी है, भय भी है, तिरस्कार भी है, घमण्ड भी है, अविवेकता भी है, उतावली भी है, निर्बोधता भी है। क्रोध के कारण दूसरों को चाहे जितना क्लेश मिले, तथापि जिस मनुष्य को क्रोध आता है, उसी को सब से अधिक क्लेश मिलता है; और उसी की सबसे अधिक हानि भी होती है।

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