विकसित हो उठी और बड़े बड़े गहन विषयों को वह समझ
लेने लगा।
बाप की सिफारिश से मिल ने प्लेटो के ग्रन्थ विचारपूर्वक पढ़े। इतिहास, राजनीति और अर्थ-शास्त्र का भी उसने अध्य- यन किया। चौदह पन्द्रह वर्ष की उम्र में उसका गृह-शिक्षण समाप्त हुआ। तब वह देश-पर्यटन के लिए निकला। फ्रांस की राजधानी पेरिस में वह कई महीने रहा। इस यात्रा में उसे बहुत कुछ तजरुवा हुआ। कुछ दिनों बाद, घूम घाम कर, वह लन्दन लौट आया। तब से उसकी यथा-नियम शिक्षा की समाप्ति हुई। जितनी थोड़ी उम्र में मिल ने तर्क और अर्थ- शास्त्र आदि कठिन विषयों का ज्ञान प्राप्त कर लिया, उतनी थोड़ी उम्र में और लोगों के लिए इस बात का होना प्रायः असम्भव समझा जाता है।
सत्रह वर्ष की उम्र में मिल ने इंडिया हाउस नामक दफ्तर में
प्रवेश किया। वहाँ उसकी क्रम क्रम से उन्नति होती गई। अन्त
में वह एग्ज़ामिनर के दफ़्तर का सबसे बड़ा अधिकारी हो
गया। पर १८५८ ईसवी में जब ईस्ट इंडिया कम्पनी टूटी, तब
वह दफ़्तर भी टूट गया। इसलिए उसे नौकरी से अलग होना
पड़ा। कोई पचीस वर्ष तक उसने नौकरी की। नौकरी ही की
हालत में उसने अनेक उत्तमोत्तम ग्रन्थ लिखे। उसका मत था
कि जो लोग केवल पुस्तक-रचना करने और समाचार-पत्रों में
छपने के लिए लेख भेजने ही पर अपनी जीविका चलाते हैं,
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