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एक तरुणी का नीलाम
मुश्तरी नाम की एक वेश्या ने, जो कविता भी करती थी, एक बार अपने दिल के विषय में एक पद्य कहा था। जहाँ तक हमें याद है, वह पद्य यह था—
खरीदारो लो चल के बाजार देखो।
दिले मुश्तरी अब बिका चाहता है॥
इस वार-वनिता ने तो अपना दिल ही बेचना चाहा था; पर अमेरिका की खूब पढ़ी-लिखी एक नौजवान कुमारिका ने अपने सारे शरीर को, मन और प्राण सहित, नीलाम कर देने का इश्तहार दिया है। वह युवती वाशिंगटन की रहनेवाली है। शिकागो में वह टाइप-राइटिंग का काम करती है। मरते दम तक सर्व-श्रेष्ठ 'बोली' बोलनेवाले की दासी होने का विचार उसने किया है। वह अपने को नीलाम करना चाहती है। इसका कारण आप उसी के मुख से सुनिए—
"इस नीलामी नोटिस को पढ़ कर लोगों को आश्चर्य होगा। परन्तु आश्चर्य्य करने का कोई कारण नहीं। क्योंकि और तरुणी लड़कियाँ भी तो अपने को बेचकर लोगों की गुलामी करती हैं। हाँ, उनकी गुलामी कुछ कुछ दूसरी तरह की जरूर है।
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