जो लोग जन्म ही से वज्र बहरे होते हैं, वे गूँगे भी होते
हैं। पर उनके गूँगेपन का यह कारण नहीं कि उनके बोलने की
इन्द्रिय नहीं है अथवा उसकी शक्ति जाती रही है। नहीं; बोलने
की शक्ति प्रायः उन सब में रहती है। पर उन्हें बोलने का
अभ्यास नहीं रहता। जब से वे पैदा होते हैं, मनुष्य की वाणी
उनके कानों में नहीं जाती; और जाती भी है तो कदाचित् कभी
कोई बहुत ऊँची बात। इसी से वे लोग बोलना नहीं जानते।
जो वाणी उनकी कर्णेन्द्रिय में कभी गई ही नहीं, उसका अभ्यास
और ज्ञान उन्हें कैसे हो सकता है? बहरों की बात जाने
दीजिए, यदि सुनने की शक्ति-युक्त कोई बच्चा पैदा होते ही या
महीने दो महीने बाद, किसी ऐसी जगह रख दिया जाय जहाँ
उसका पालन-पोषण करनेवालों के मुँह से कभी कोई बात न
निकले तो, बड़ा होने पर भी, न वह बोल सकेगा, न औरों की
बात समझ सकेगा। हाँ, कुछ समय बाद पीछे से चाहे वह भले
ही बोलने लगे।
यही बात बहरों की है। उनके कान में मनुष्य की बात न
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