पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१०१

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हा छ द] लोसनाया ___ Rs1/ ___ ( ५१ ) मा मनमत्थ विराजत सेभि तरे। जनु भासत लोभहि दान करे ।। २३६ ॥ [मरहट्टा छ द] ला" आन द प्रकासी सब पुरवासी करत ते दौरा दारी। आरती उतारै सरवस वारै अपनी अपनी पारी॥ र पढ़िमत्र अशेषनि करि अभिषेकान आशिष दे सविशेष ।' कुकुम-कर्पूरनि मृगमद-चूरनि वर्षति - वर्षा वेषै ॥२३७।। [आभीर छ । यहि विधि श्रीरघुनाथ । गहे भरत को हाथ ।। पूजत लोग अपार । गये राजदरबार ।। २३८ ।। गये एकही बार । चारों राजकुमार ।। सहित वधूनि सनेह । कौशल्या के गेह ॥ २३९ ॥ उन त्रिभगी छ द] बाजे बहु बाजे तारनि साजै सुनि सुर लाजै दुख भाजै। नाचै नव नारी सुमन सिँगारी गति मनुहारी सुख साजै ॥ बीनानि बजावै गीतनि गावै मुनिन रिझावै मन भावै। भूखन पट दीजै सब रस भीजै देखत जीजै छबि छावै ॥२४॥ [सो०] रघुपति पूरण चद, देखि देखि सब सुख म.। दिन दूने आन द, ता दिन तै तेहि पुर ब?, ॥२४१ ॥ (१) सोम तरे = शृ गार के नीचे। (पाठातर ) 'जनु राजत काम सिंगार तरे।