-> ( ५९ ) .५ वाके अति सीत कर, तुहूँ सीता सीतकर, चद्रमा सी चद्रमुखी सब जग जानिए ॥२९।। कलित कलक-केतु, केतु-अरि, सेत गात, काय भोग-योग को अयोग, रोग ही को थल सौं। , , पून्यौई को पूरन पै प्रतिदिन दून दूना पता ' छन छन छीन होत छीलर' को जल सौं ॥ ... चद्र सौ जो बरनत रामचद्र की दुहाई साई मति मद कवि केसव कुसल सौ। (२ सु दर सुवास अरु कोमल अमल अति सीताजू को मुख सखि केवल कमल सौं ॥३०॥ एके कहै अमल कमल मुख सीताजू को । , एक कहैं चद्र सम आनँद को कद् री। होइ जौ कमल तो रयनि मे न सकुचै री । चद जी तो बासर न होइ द्यु ति मद री॥ वासर ही कमल रजनि ही मे चद्र, मुख बासर हू रजनि विराजै जगबद री। देखे मुख भावै अनदेखेई कमल चंद तातै मुख मुखै, सखी, कमलौ न चंद री ॥३१॥ [दा०] सीता नयन चकोर सखि, रविवशी रघुनाथ । रामचद्र सिय कमल मुख, भला बन्यो है साथ ॥३२॥ (१) छीलर = चुल्लू, अँजुली । (२) तातै · चद री=इससे इस मुख के समान यही मुख है, कमल और चद्र इसके समान नहीं हैं ।
पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१०९
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