पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( ७९ ) [दोधक छद] ' शूर्पणखा-राम सहोदर मो तन देखा। रावण की भगिनी जिय लेखौ ॥ राजकुमार रमौ सँग मेरे। .. होहिं सबै सुख सपति तेरे ॥३७॥ लक्ष्मण-वै प्रभु है। जन जानि सदाई । दासि भये महँ कौनि बडाई ॥ जौ भजिए प्रभु तो प्रभुताई। दासि भये उपहास सदाई ॥३८॥ [मल्लिका छ द] हास के विलास जानि । दीह मानखड' मानि ॥ भक्षिबे को चित्त चाहि । सामुहे भई सियाहि ॥३९॥ . [तोमर छ द] 06- तब रामचद्र प्रवीन । हँसि बधु त्यों हग दीन । एक गुनि दुष्टता सह लीन । श्रुति नासिका बिनु कीन ॥४०॥ दा०] सोन छिछि छूटत वदन, भीम भयी तेहि काल । । माना कृत्या कुटिल युत, पावक-ज्वाल कराल ॥४१॥ रस ' पाय खरदूषण-वध [तोटक छ द] गइ शूर्पणखा खरदूषण पै। सजि ल्यायी तिन्है जगभूषण पै ॥ शर एक अनेक ते दूरि किये । रवि के कर ज्यौं तमपुज पिये ॥४२॥ (१) मानखड = अपमान ।