पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१४३

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[ विजय छ द ]
बावन कौ पद लोकन मापि ज्यौं बावन के वपु मॉह सिधायो।
केशव सूरसुता जल सिंधुहिं पूरिकै सूरहि को पद पायो ।
काम के बाण त्वचा सब वेधिकै काम पै आवत ज्यों जग गायो।
राम को शायक सातहु तालनि वेधिकै रामहिं के कर आयो ॥ १४ ॥
[ सो० ] जिनके नाम विलास, अखिल लोक वेधत पतित ।
'तिनको केशवदास, सात ताल वेधन कहा ॥ १५ ॥
बालि वध .
[ पद्धटिका छद ]
रवि-पुत्र बालि सौं होत युद्ध ।
रघुनाथ भये मन माह क्रुद्ध ।
शर एक हन्यौ उर मित्र काम ।
तब भूमि गिरयौ कहि 'राम' 'राम' ॥ १६ ॥
कछु चेत भये तेहि बल-निधान ।
रघुनाथ विलोके हाथ बान ।।
शुभ चीर जटा शिर श्याम गात !
वनमाल हिये उर विप्रलात ॥ १७ ॥
बालि---तुम आदि मध्य अवसान एक ।
जग मोहत हो वपु धरि अनेक ।।
तुम सदा शुद्ध सब को समान ।
केहि हेतु हत्यौ करुनानिधान ? ॥ १८ ॥