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पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१४४

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राम---सुनि वासव-सुत बुधि-बल-निधान ।
मैं शरणागत हित हते प्रान ।।
यह साँटो' लै कृष्णावतार ।
तब है हो तुम ससार पार ॥१९॥
रघुवीर रक ते राज कीन ।
युवराज बिरद अगदहि दीन ॥
तब किष्किंधा तारा समेत ।
सुग्रीव गये अपने निकेत ॥२०॥
[ दो०] कियो नृपति सुग्रीव हति, बालि बली रणधीर ।
गये प्रवर्षण अद्रि कों, लक्ष्मण श्री रघुवीर ॥२१॥
"प्रवर्षणगिरि-वर्णन
[ विभगी छन् ]
"देख्यौ शुभ गिरिवर सकल सोभ धर,
फूल, बरन बहु फलनि फरे ।
सँग सरभ ऋक्ष जन केसरि के गण,
मनहुँ धरणि सुग्रीव धरे।
सँग सिवा विराजै गज मुख गाजै,
परभृत' बोलै चित्त हरे।
सिर सुभ चद्रक ३ धर परम दिगंबर,
मानौ हर अहिराज धरे ॥२२॥


(१) सॉटो = बदला। (२) परभृत = कोकिल । (३) चद्रक = तालाब चद्रमा ।