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लंका कांड
रावण प्रति मंदोदरी का उपदेश
[विजय छद]
मदोदरी--राम की वाम जो आनी चोराइ,
सो लक मै मीचु की बेलि बई जू।
क्यौं रन जीतहुगे तिनसौं, जिन
की धनु रेख न नॉघि गई जू॥
बीस बिसे बलवत हुते जो
हुती दृग केसव रूपरई जू।
तोरि सरासन सकर को पिय
सीय स्वयवर क्यों न लई जू॥१॥
बालिकाली न बच्यो पर खोरहि
क्यौं बचिहौ तुम आपनि खोरहिं।
जा लगि छीर समुद्र मथ्यो कहि
कैसे न बॉधिहै वारिधि थोरहिं॥
श्री रघुनाथ गनौ असमर्थ न,
देखि बिना रथ हाथिन घोरहिं।
तोरयो सरासन सकर को जेहि
सोऽब कहा तुव लंक न तोरहि॥२॥