पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१८७

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कुपुरुष किंपुरुष काहली कलही क्रूर
कुटिल कुमत्री कुलहीन केसौ ढोहिए॥
पापी लोभी शठ अंध बावरो बधिर गूँगो
बौना अविवेकी हठी छली निरमोहिए।
सूम सर्वभच्छी दववादी जो कुबादी जड
अपयसी ऐसो भूमि भूपति न सोहिए॥८७॥

[निशिपालिका छद]
वानर न जानु सुर जानु सुभगाथ है।
मानुष न जानु रघुनाथ जगनाथ हैं॥
जानकिहिं देहु, करि नेहु कुल देह सों।
आजु रन साज पुनि गाजु हँसि मेह सो॥८॥
रावण-[दो०] कुभकरन करि युद्ध कै सोइ रहौ घर जाइ।
वेगि विभीषण ज्यौं मिल्यो, गहौ शत्रु के पाइ॥८९॥

कुंभकर्ण-युद्ध
[चामर छद]
कुभकर्ण रावनै प्रदच्छिनाहि दै चल्यो।
हाइ हाइ है रह्यो अकास आसु ही हल्यो।
मध्य छुद्रघटिका किरीट सीस सोभनो।
लच्छ पच्छ सो कलिंद्र इद्र पै चढयो मनो॥९०॥

[नाराच छद]
उडै़ दिसा दिसा कपीस कोरि कोरि स्वासहीं।
चपै चपेट पेट बाहु जानु जंघ सों तहीं।