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पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१९९

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(१४९)

स्यौं पताक काटि चाप चर्म बर्म मर्म छेदि।
जात भो रसातलै असेस कठमाल भेदि॥१४१॥

[दडक छद]

सूरज' मुसल, नील पट्टिस, परिघ नल,
जामवत असि, हनू तोमर प्रहारे है।
परसा सुखेन, कुत केशरी, गवय शूल,
विभीषण गदा, गज भिदिपाल तारे हैं॥
मोगरा द्विविद, तीर कटरा, कुमुद नेजा,
अगद सिला, गवाक्ष विटप बिदारे है।
अकुश शरभ, चक्र दधिमुख, शेष शक्ति
बान तिन रावन श्रीरामचंद्र मारे हैं॥१४२॥
हो०] द्वैभुज श्रीरघुनाथ सौ, बिरचे युद्ध विलास।
बाहु अठारह यूथपनि, मारे केसौदास॥१४॥

[गगोदक छद]

युद्ध जोई जहाँ भाँति जैसी करै
ताहि ताही दिसा रोकि राखै तहीं।
अस्त्र लै आपने शस्त्र काटै सबै
ताहि केहूँ कहूँ घाव लागै नहीं।
दौरि सौमित्र लै वाण कोदड यों
खड खडी ध्वजा धीर छत्रावली।