पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/२२०

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मरनकाल कोऊ कहै, पापी होइ पुनीत।
सुखही हरिपुर जाइहै, सब जग गावै गीत॥६६॥
रामनाम के तत्त्व को, जानत वेद प्रभाव।
गंगाधर कै धरनिधर, बालमीकि मुनिराव॥६७॥
मोहिं न हुतो जनाइबे, सबही जान्यो आजु।
अब जो कहौ सो करि बनै, कहे तुम्हारे काजु॥६८॥
रामतिलकोत्सव
[दोधक छ द]
सातहु सिधुन के जल रूरे। तीरथजालनि के पय पूरे।
कचन के घट वानर लीने। आइ गये हरि आनँद भीने॥६९॥
[दो०] सकल रत्नमय मृत्तिका, शुभ औषधी अशेष।
सात द्वीप के पुष्प फल, पल्लव रम सविशेष॥७०॥
[दोधक छ द]
आँगन हीरन को मन मोहै। कुंकुम चदन चर्चित सोहै।
है सरसी सम सोभप्रकासी। लोचन मीन मनोज विलासी॥७१॥
[दो०] गजमोतिनयुत सोभिजै, मरकतमनि के थार।
उदक बुद सौं जनु लसत, पुरइनिपत्र अपार॥७२॥
[विशेषक छ द]
भाँतिन भॉतिन भाजन राजत कौन गनै।
ठौरहि ठौर रहे जनु फूलि सरोज घनै।
भूपन के प्रतिबिंब विलोकत रूप रसे।
खेलत है जल मॉझ मनो जलदेव बसे॥७३॥