पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/२२५

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सबै जीव हैं सर्वदान द पूरे।
क्षमी सयमी विक्रमी साधु शूरे॥
युवा सर्वदा सर्व विद्या विलासी।
सदा सर्व सपत्ति शोभा प्रकाशी॥९५
चिरजीव सयोग योगी अरोगी।
सदा एकपत्नीव्रती भोग भोगी।
सवै शील सौंदर्य सौगध धारी।
सवै ब्रह्मज्ञानो गुणी धर्मचारी॥९६।
सबै न्हान दानादि कर्माधिकारी।
सबै चित्त चातुर्थ्य चिंताप्रहारी॥
सबै पुत्र पौत्रादि के सुक्ख साजैं।
सबै भक्त माता पिता के विराजै॥९७॥
सबै सुदरी सुदरी साधु सोहैं।
शची सी सती सी जिन्हैं देखि मोहैं॥
सबै प्रेम की पुण्य की सद्मिनी' सी।
सवै चित्रिणी पुत्रिणी पद्मिनी सी॥९८॥
भ्रमै सभ्रमी, यत्र शोकै सशोकी।
अधमैं अधर्मी, अलोकै अलोकी॥
दुखै तौ दुखी, ताप तापाधिकारी।
दरिद्रै दरिद्री, बिकारै बिकारी॥९९॥


(१) सद्मिनी = हवेली, घर। (२) अलोक = अपलोक, बदनामी, अयश। (३) अलोकी = बदनाम, कलकी।