पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/३४

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अध्यात्मरामायण आदि सस्कृत ग्रथों के अनुसार केशव का मत है कि रावण ने वस्तुतः सीता का हरण नहीं किया, उसकी छायामात्र का हरण किया। इसका अर्थ यह नहीं समझना चाहिए कि रावण सीता के शरीर मात्र को उठा ले गया, मन तो उसका सतत राम ही के पास रहा। क्योंकि सीता ने तो सदेह अग्नि में निवास कर लिया था और इस छाया-शरीर मे अग्नि-परीक्षा के समय उसने प्रवेश किया। ज्यों नारायण उर श्री वसंति । त्यों रघुपति उर कछु द्युति लसति॥ में सीता को अपनी विश्वासपात्रता बतलाने के उद्देश्य से राम का वर्णन करते हुए हनुमान ने जिस द्युति का उल्लेख किया वह इसी अग्नि की थी जिसे राम हृदय मे रखे हुए थे। परतु केशव ने इसका उल्लेख इस ढंग से किया है कि कथा का आन द जाता रहा है। राम सीता से कहते हैं- चाहत हौं भुव भार हरयो अब । पावक में निज देहहिं राखहु । छाय शरीर मृगै अभिलाषहु । इस कथन का प्रभाव प्रबध की दृष्टि से बडा हानिकर होता है। इससे आगे की सब लीला लीला ही रह जाती है। राम का विलाप, सीता को खोजने का प्रयत्न इत्यादि सब झूठे मालूम पडने लगते हैं। इसकी सूचना और किसी तरह से दी जा सकती थी। असल में तो भगवान् को चाहिए था कि लक्ष्मी को अवतार का लक्ष्य और उसकी पूर्ति की